Alankar in hindi-Ornaments-अलंकार
Alankar in hindi : अलंकार शब्द की उत्पत्ति 'अलम्' धातु से हुई है। इसका अर्थ आभूषण होता है। जिस प्रकार स्वर्ण आदि के आभूषणों से शरीर की शोभा बढ़ती है, उसी प्रकार अलंकार Alankar के प्रयोग से काव्य में चमत्कार, सौंदर्य और आकर्षण उत्पन्न होता है।
अलंकारों के प्रकार Types of Alankar
1. अनुप्रास अलंकार : जहाँ एक ही वर्ण की आवृत्ति बार-बार हो, वहाँ अनुप्रास अलंकार होता है।
जैसे →
मुदित महीपति मन्दिर आये।
सेवक सचिव सुमंत बुलाये।
मुदित महीपति मन्दिर आये।
सेवक सचिव सुमंत बुलाये।
इस चौपाई में पूर्वार्द्ध में म की और उत्तरार्द्ध में स की तीन बार आवृत्ति हुई है।
अनुप्रास के पाँच भेद हैं → छेकानुप्रास, वृत्यानुप्रास, लाटानुप्रास श्रुत्यानुप्रास, अन्त्यानुप्रास
2. यमक अलंकार : जहाँ एक शब्द की आवृत्ति दो या दो से अधिक बार होती है, परन्तु उनके अर्थ अलग-अलग होते हैं, वहाँ यमक अलंकार alankar होता है।
जैसे →
कनक कनक ते सौ गुनी मादकता अधिकाय।
वा खाये बौराए नर, या पाए बौराय।
कनक कनक ते सौ गुनी मादकता अधिकाय।
वा खाये बौराए नर, या पाए बौराय।
यहाँ कनक शब्द का दो बार प्रयोग हुआ है,परन्तु दोनों के अर्थ भिन्न-भिन्न हैं धतूरा और सोना ।
3. श्लेष अलंकार : जहाँ एक शब्द का एक ही बार प्रयोग होता है, परन्तु उसके अर्थ अनेक होते हैं, वहाँ श्लेष अलंकार alankar होता है।
जैसे →
रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून।
पानी गए न ऊबरै, मोती मानुष चून।
इस उदाहरण में 'पानी' के तीन अर्थ हैं चमक (मोती के लिए), प्रतिष्ठा (मनुष्य के लिए) तथा जल (आटे के लिए)
4. उपमा अलंकार: जहाँ दो वस्तुओं के बीच समानता का भाव व्यक्त किया जाता है। वहाँ उपमा अलंकार alankar होता है।
जैसे →
हरि पद कोमल कमल से।
भगवान के चरण कमल के समान कोमल हैं।
5. रूपक अलंकार : जहाँ उपमेय पर उपमान का आरोप कर उनकी एकरूपता का प्रतिपादन किया जाए, वहाँ रूपक अलंकार होता है। यहाँ पर उपमेय उपमान का रूप धारण कर लेता है।
जैसे →
चरण कमल बन्दौ हरि राई।
इसमें 'चरण' अपमेय में पर 'कमल' उपमान का आरोप हुआ है अतः यह रूपक अलंकार
6. उत्प्रेक्षा अलंकार : जहाँ पर उपमेय में उपमान की सम्भावना की जाए, वहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। इसमें प्रायः मनु, जनु, मानो, जानो, निश्चय जैसे शब्दों का प्रयोग किया जाता है।
जैसे →
सोहत ओढ़े पीत पट श्याम सलोने गात ।
मनो नीलमनि - सैल पर, आतपु पर्यो प्रभात ।
श्रीकृष्ण पीताम्बर पहने हुए हैं। उनके शरीर को देखकर ऐसा लगता है, मानो नील पर्वत पर प्रभात के सूर्य का पीले रंग का प्रकाश पड़ रहा हो यहाँ उपमेय ( श्रीकृष्ण ) में उपमान ( नील पर्वत पर सूर्य का प्रकाश ) की सम्भावना की गयी है । यह मनो शब्द से प्रकट हो रहा है
7. अतिशयोक्ति अलंकार : जहाँ किसी वस्तु का बढ़ा चढ़ाकर वर्णन किया जाये, वहाँ अतिशयोक्ति अलंकार alankar होता है।
जैसे →
अब जीवन की हैं कपि न कोय ।
कनगुरिया की सुँदरी कंगना होय।
8. व्यतिरेक अलंकार : जहाँ उपमेय को उपमान से बढ़ाकर या उपमान को उपमेय से घटाकर वर्णन किया जाता है, वहाँ व्यतिरेक अलंकार होता है।
जैसे →
संत हृदय नवनीत समाना,
कहा कविन पै कहन न जाना।
9. विरोधाभास अलंकार: जहाँ विरोध न होते हुए भी विरोध का आभास किया जाए , वहाँ विरोधाभास अलंकार alankar होता है।
जैसे →
या अनुरागी चित्त की, गति समुझे नहिं कोई ।
ज्यों-ज्यों बूड़ै श्याम रंग, त्यों-त्यों उज्ज्वल होई।
यहाँ कहा गया है कि श्याम रंग (काले रंग) अर्थात् श्रीकृष्ण की भक्ति में मन जितना अधिक डूबता है, उतना ही अधिक उज्ज्वल होता जाता है ।
10. दृष्टान्त अलंकार : जहाँ उपमेय, उपमान और साधारण धर्म का बिम्ब प्रतिबिम्ब भाव होता है, वहाँ दृष्टांत अलंकार alankar होता है।
जैसे →
बसै बुराई जासु तन, ताही को सन्मान ।
भलो भलो कहि छोड़िए, खोटे ग्रह जप दान।
11. वक्रोक्ति अलंकार : जहाँ सुनने वाला, वक्ता के शब्दों का मूल आशय से भिन्न अर्थ लगाता है, वहाँ वक्रोक्ति अलंकार होता है।
जैसे →
सीताजी का यह कथन “ मैं सुकुमारि। नाथ बन जोगू "
'मैं सुकुमारि' पर काकू की व्यंजना करता है
अतः वहाँ काकू वक्रोक्ति है ।
12. अन्योक्ति अलंकार : जहाँ किसी प्रस्तुत वस्तु का वर्णन न करके उसके समान किसी अन्य वस्तु का वर्णन किया जाए अर्थात् प्रस्तुत वस्तु का प्रतीकों के माध्यम से वर्णन किया जाए, वहाँ अन्योक्ति अलंकार alankar होता है।
जैसे →
नहिं पराग नहिं मधुर मधु, नहि विकास इहि काल ।
अली कली ही सौं विंध्यौं, आगे कौन हवाल।
इन पंक्तियों में भ्रमर और कली के प्रतीकों के माध्यम से राजा जयसिंह को सचेत किया गया है, इसलिए अन्योक्ति alankar अलंकार है।
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