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 lokoktiyan in hindi-Proverbs-लोकोक्तियाॅ-कहावतें 

 

lokoktiyan in hindi : लोकोक्तियों का अर्थ होता है लोक अनुभव पर आधारित उपवाक्य यह श्रोताओं के हृदय पर तीखा तथा गहरा प्रभाव डालते हैं। 

लोकोक्तिय lokoktiyan युगों युगों से चली आ रही है। यह अपने विशेष अर्थों में आज तक लोक लोक में प्रचलित है इनका प्रयोग बोलचाल की भाषा में किए जाने के कारण इन्हें कहावतें भी कहते हैं। 


  लोकोक्तियां lokoktiyan और मुहावरे Idioms में अंतर

1. मुहावरा Idioms वाक्यांश होता है, जबकि लोकोक्ति lokoktiyan एक पूरा वाक्य होता है। 

2.  मुहावरे Idioms में उद्देश्य और विधेय नहीं होता, जबकि लोकोक्ति lokoktiyan में उद्देश्य और विधेय होता है।

 3. मुहावरा Idioms वाक्य का अंश होता है, इसलिए इसका स्वतंत्र प्रयोग संभव नहीं है, इनका प्रयोग वाक्य के अंतर्गत ही संभव है।  लोकता Proverbs एक पूरे वाक्य के रूप में होती है इसलिए इसका स्वतंत्र प्रयोग संभव है। 

4. मुहावरा Idioms शब्दों के व्यंजनात्मक प्रयोग है जबकि लोकोक्तियॅ lokoktiyan वाक्यों के व्यंजनात्मक प्रयोग है। 


लोकोक्तियॅ lokoktiyanऔर कहावतें एवं उनके अर्थ


अधजल गगरी छलकत जाए  थोड़ी विद्या, धन या बल होने पर इतराना 

अशर्फी की लूट और कोयले पर छाप → मूल्यवान वस्तुओं को नष्ट करना और तुच्छ वस्तुओं को  संजोना

अंधों के आगे रोना, अपना दीदा खोना → निर्दयी या मूर्ख के आगे अपना दुख बताना बेकार है 

अपनी करनी पार उतरनी → किये का फल भोगना 

अपना ढेंढर न देखे और दूसरे की फूली निहारे → अपना दोष न देखकर दूसरों का दोष देखना 

अपनी-अपनी डफली, अपना अपना राग → परस्पर संगठन या मेल में रखना

आप डूबे जग डूबा → जो स्वयं बुरा होता है, वह दूसरों को भी बुरा समझता है 

आग लगन्ते झोपड़ा जो निकले तो लाभ → नष्ट होती हुई वस्तु में से जो कुछ आए वह लाभ ही है 

आग लगाकर जमालो दूर खड़ी → झगड़ा कराकर अलग हो जाना

आगे नाथ न पीछे पगहा → अपना कोई न होना, घर का अकेला होना 

आगे कुआँ पीछे खाई → हर तरफ हानि की आशंका

आँख का अंधा नाम नयनसुख → गुण के विरुद्ध नाम

आधा तीतर आधा बटेर → बेमेल स्थिति

आप भला तो जग भला → स्वयं अच्छे तो संसार अच्छा

आम के आम गुठलियों के दाम → सब तरफ से लाभ ही लाभ 

आए थे हरि भजन को ओटन लगे कपास → करने को तो कुछ गए और करने लगे कुछ और

इतनी सी जान गज भर की जवान  छोटी होना पर बढ़ बढ़कर बोलना  

ईट का जवाब पत्थर से → दुष्ट के साथ दुष्टता करना 

इस हाथ दे उस हाथ ले → कर्मों का फल शीघ्र पाना

ईश्वर की माया कहीं धूप कहीं छाया → कहीं सुख कहीं दुख 

उल्टा चोर कोतवाल को डांटे→ अपराधी ही पकड़ने वाले को अपराधी बताएं 

ऊपर ऊपर बाबाजी भीतर दगाबाज → बाहर से अच्छा अंदर से बुरा 

ऊंची दुकान फीका पकवान → बाहर ढकोसला भीतर कुछ नहीं 

ऊंचे चढ़  देखा तो घर घर एकै लेखा → सभी एक समान 

ऊंट किस करवट बैठता है → किसकी जीत होती है 

ऊंट के मुंह में जीरा → जरूरत से बहुत कम 

ऊंट बहे और गधा पूछे कितना पानी → जहां बड़ों का ठिकाना नहीं वहां छोटो का क्या कहना 

ऊधो का लेना न माधो का देना → लटपट से अलग रहना

एक पंथ दो काज →  एक नहीं दो लाभ

एक तो करेला आप तीता दूजे नीम चढ़ा → बुरे का और बुरे से संग होना 

एक अनार सौ बीमार → एक वस्तु को सभी चाहने वाले

एक तो चोरी दूसरी सीनाजोरी → दोष करके ना मानना

 एक म्यान में दो तलवार → एक स्थान पर दो उग्र विचारों वाले 

ऊंचे की प्रीत बालू की भीत → नीचे का प्रेम क्षणिक 

ओस चाटने से प्यास नहीं बुझती → अधिक कंजूसी से काम नहीं चलता 

कबीर दास की उल्टी वाणी बरसे कंबल भीगे पानी → प्रकृति विरुद्ध काम

 कहां राजा भोज कहां गंगू तेली → छोटे का बड़े के साथ मिलान करना 

कहे खेत की सुने खलिहान की → हुकुम कुछ और करना कुछ और 

कहीं का ईंट कहीं का रोड़ा भानुमति ने कुनबा जोड़ा → इधर उधर से सामान जुटाकर काम करना 

लोकोक्तियॅ lokoktiyanऔर कहावतें एवं उनके अर्थ

काला अक्षर भैंस बराबर → निरा अनपढ़

थूक कर चाटना ठीक नहीं → वचन भंग करना, अनुचित 

दमड़ी की हाँड़ी गयी, कुत्ते की जात पहचानी गयी → मामूली वस्तु में दूसरे की पहचान 

दमड़ी की बुलबुल, नौ टका दलाली → काम साधारण, खर्च अधिक 

दाल भात में मूसलचन्द → बेकार दखल देना 

दुधारु गाय की दो लात भी भली → जिससे लाभ होता हो , उसकी बातें भी सह लेनी चाहिए 

दूध का जला मट्ठा भी फूंक-फूँक कर पीता है → एक बार धोखा खा जाने पर सावधान हो जाना

दूर का ढोल सुहावना → दूर से कोई चीज अच्छी लगती है 

देशी मुर्गी, विलायती बोल → बेमेल काम करना 

धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का → निकम्मा, व्यर्थ इधर उधर डोलनेवाला

नक़्क़ारखाने में तूती की आवाज → सुनवाई न होना 

न नौ मन तेल होगा, न राधा नाचेगी → न बड़ा प्रबंध होगा न काम होगा 

रोज़ा बख्शने गये नमाज़ गले पड़ी → लाभ के बदले हानि

 न देने के नौ बहाने  → न देने के बहुत से बहाने

 न रहेगा बाँस न बजेगी बाँसुरी  → झगड़े के कारण को नष्ट करना

नदी में रहकर मगर से वैर → जिसके अधिकार में रहना, उसी से वैर करना

नाच न जाने आँगन टेढ़ा → खुद तो ज्ञान नहीं रखना और दूसरों को दोष देना 

बाँझ क्या जाने प्रसव की पीड़ा → जिसको दुःख नहीं हुआ है वह दूसरे के दुःख को समझ नहीं सकता 

बिल्ली के भाग्य से छींका टूटा → संयोग अच्छा लग गय  

बोये पेड़ बबूल के आम कहाँ से होय → जैसी करनी, वैसी भरनी

बैल का बैल गया नौ हाथ का पगहा भी गया  → बहुत बड़ा घाटा होना 

बकरे की माँ कब तक खैर मनायेगी → भय की जगह पर कब तक रक्षा होगी

बेकार से बेगार भली → चुपचाप बैठे रहने की अपेक्षा कुछ काम करना

बड़े मियाँ तो बड़े मियाँ, छोटे मियाँ सुभान अल्लाह → बड़ा तो जैसा है, छोटा उससे बढ़कर है       

भागते भूत की लँगोटी ही सही → जाते हुए माल में जो मिल जाय वही बहुत है 

भइ गति साँप छछूंदर केरी → दुविधा में पड़ना 

भैंस के आगे बीन बजावे, भैंस रही पगुराय → मूर्ख को गुण सीखाना व्यर्थ है 

मियाँ की दौड़ मस्जिद तक → किसी के कार्यक्षेत्र या विचार शक्ति का सीमित होना

मेढ़की को भी जुकाम  → ओछे का इतराना

लोकोक्तियॅ lokoktiyanऔर कहावतें एवं उनके अर्थ

मार मार कर हकीम बनाना → ज़बरदस्ती आगे बढ़ाना

मन चंगा तो कठौती में गंगा → हृदय पवित्र तो सब कुछ ठीक

 मुँह में राम बगल में छुरी →  कपटी व्यक्ति 

मान न मान मैं तेरा मेहामन  → ज़बरदस्ती किसी के गले पड़ना 

माले मुफ्त दिले बेरहम → मुफ्त मिले पैसे को खर्च करने में ममता न होना

मियां बीवी राजी तो क्या करेगा काज़ी → जब दो व्यक्ति परस्पर किसी बात पर राज़ी हों तो दूसरे को इसमें क्या 

मोहरों की लूट, कोयले पर छाप  → मूल्यवान वस्तुओं को छोड़कर तुच्छ वस्तुओं पर ध्यान देना 

मानो तो देव, नहीं तो पत्थर → विश्वास ही फलदायक 

रस्सी जल गयी पर ऐंठन न गयी → बुरी हालत में पड़कर भी अभिमान न त्यागना 

रोग का घर खाँसी  झगड़े घर हाँसी →अधिक मज़ाक बुरा 

लश्कर में ऊँट बदनाम  → दोष किसी का, बदनामी किसी की

लूट में चरखा नफ़ा → मुफ़्त में जो हाथ लगे, वही अच्छा

लेना देना साढ़े बाईस →  सिर्फ मोल तोल करना 

सत्तर चूहे खाके बिल्ली चली हज को → जन्म भर बुरा करके अन्त में धर्मात्मा बनना

साँप मरे पर लाठी न टूटे → अपना काम हो जाय पर कोई हानि भी न हो

 सीधी उँगली से घी नहीं निकलता → सिधाई से काम नहीं होता

 सारी रामायण सुन गये, सीता किसकी जोरू → सारी बात सुन जाने पर साधारण सी बात का भी ज्ञान न होना 

हाथ कंगन को आरसी क्या → प्रत्यक्ष के लिए प्रमाण क्या 

हाथी के दाँत दिखाने के और खाने के और → बोलना कुछ करना कुछ

हाथी चले बाजार, कुत्ता भूँके हजार → उचित कार्य करने में दूसरों की निन्दा की परवाह नहीं करनी चाहिए 

मँगनी के बैल के दाँत नहीं देखे जाते →  मुफ़्त मिली चीज पर तर्क व्यर्थ 

हँसुए के ब्याह में खुरपे का गीत → बेमौक़ा

हंसा थे सो उड़ गये, कागा भये दीवान → नीच का सम्मान 

काबुल में क्या गदहे नहीं होते → अच्छे - बुरे सभी जगह हैं 

का वर्षा जब कृषि सुखाने  → मौक़ा बीत जाने पर कार्य करना व्यर्थ है 

काठ की हाँड़ी दूसरी बार नहीं चढ़ती → कपट का फल अच्छा नहीं होता 

किसी का घर जले, कोई तापे → दूसरे का दुःख में देखकर अपने को सुखी मानना

खरी मज़ूरी चोखा काम →अच्छे मुआवज़े में ही अच्छा फल प्राप्त होना 

खोदा पहाड़ निकली चुहिया → कठिन परिश्रम, थोड़ा लाभ 

खेत खाये गदहा , मार खाये जोलहा → अपराध करे कोई, दण्ड मिले किसी और को 

गाँव का जोगी जोगडा, आन गाँव का सिद्ध → बाहर के व्यक्तियों का सम्मान, पर अपने यहाँ के व्यक्तियों की क़द्र ( क़दर ) नहीं

गुड़ खाय गुलगुले से परहेज़ → बनावटी परहेज़

गोद में छोरा नगर में ढिंढोरा →  पास की वस्तु का दूर जाकर ढूँढ़ना 

गाछे कटहल, ओठे तेल  → काम होने के पहले ही फल पाने की इच्छा

गरजे सो बरसे नहीं → बकवादी कुछ नहीं करता 

गुरु गुड़  चेला चीनी → गुरु से शिष्य का ज्यादा काबिल हो जाना

घड़ी में घर जले , नौ घड़ी भद्रा  → हानि के समय सुअवसर - कुअवसर पर ध्यान न देना 

घर पर फूस नहीं, नाम धनपत → गुण कुछ नहीं, पर गुणी कहलाना 

घर का भेदी लंका ढाए → आपस की फूट से हानि होती है 

घर की मुर्गी दाल बराबर → घर की वस्तु का कोई आदर नहीं करना

घर में दिया जलाकर मसजिद में जलाना → दूसरे को सुधारने के पहले अपने को सुधारना 

घी का लड्डू टेढ़ा भला → लाभदायक वस्तु किसी तरह की क्यों न हो 

चोर की दाढ़ी में तिनका → जो दोषी होता है वह खुद डरता रहता है

चूहे घर में दण्ड पेलते हैं → अभाव ही अभाव

मड़ी जाय, पर दमड़ी न जाय →  महा कंजूस 

ठठेरे ठठेरे बदलौअल →  चालाक को चालाक से काम पड़ना 

ताड़ से गिरा तो खजूर पर अटका → एक ख़तरे में से निकलकर दूसरे ख़तरे में पड़ना

तीन कनौजिया, तेरह चूल्हा →  जितने आदमी उतने विचार 

तेली का तेल जले और मशालची का सिर दुखे → खर्च किसी का हो और बुरा किसी और को मालूम हो

तन पर नहीं लत्ता पान खाय अलबत्ता → झूठा  दिखावा करना

तीन लोक से मथुरा न्यारी →  निराला ढंग 

तुम डाल-डाल तो हम पात-पात →  किसी की चाल को ख़ूब समझते हुए चलना


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