District Champawat Uttarakhand-tourist place in Champawat-जनपद चंपावत उत्तराखंड

District Champawat Uttarakhand


Champawat ka itihaas चंपावत का इतिहास 

District Champawat Uttarakhand: समुद्र तल से 5000 फुट की ऊंचाई पर स्थित चंपावत की स्थापना 953 ई० में प्रथम चंद्र वंशीय राजा सोम चंद्र द्वारा की गई थी। मान्यता है कि सोमचंद ने अपनी पत्नी चंपा के नाम पर चंपावत का नाम रखा था। 15 सितंबर 1997 चंपावत Champawat को जिला district बनाया गया। चंपावत का प्राचीन नाम कुमुं है। 

जिला चंपावत jila Champawat भगवान विष्णु के कूर्म अवतार की शिला कामदेव, बानर राज बाली द्वारा स्थापित बालेश्वर मंदिर, कुमाऊं के लोक देवता गोरिल के आश्रम गोरिलचौड़ , तथा कैलाश मानसरोवर के पारंपरिक मार्ग में होने के कारण सदैव ही चर्चा में रहता है।  हिमालयी सौंदर्य की दृष्टि से चंपावत शहर Champawat City  उत्तराखंड के सुंदर  हिल स्टेशनों Hill station में से एक है।  यहां की जलवायु  पूरे वर्ष एक जैसी होने के कारण यह चंपावत टूरिज्म Champawat tourism को बढ़ावा देती है। 

बद्री दत्त पांडे ने अपनी पुस्तक कुमाऊं का इतिहास में लिखा है कि चंपावत के पूर्व में ऊंचे पर्वत पर क्रांतिस्वर महादेव है, इसे कूर्म पाद भी कहते हैं। तथा पहाड़ के सामने देवदार के घने जंगलों में मल्लाणेश्वर महादेव है। और पश्चिम की तरफ हिंगला देवी तथा नृसिंह देवता का मंदिर है जो सिद्ध के नाम से प्रसिद्ध है। 

हिंगला देवी मंदिर के भीतर 4 फीट लंबी और 3 फीट चौड़ी कूर्म शिला है। इसी शिला के नाम पर इस क्षेत्र का नाम कूर्मान्चल अथवा कुमाऊं पड़ा था। पुराणों के अनुसार यह भी कहा जाता है कि भगवान विष्णु ने चंपावती नदी के निकट कुर्म अवतार लिया था, जिसके कारण उस स्थान को कुर्मांचल कहा जाने लगा कालांतर में कुंमु और फिर कुमाऊं में परिवर्तित हो गया। 

Champawat district Uttarakhand

मुख्यालय headquarters  ⟶ चंपावत Champawat

क्षेत्रफल  Area ⟶ 1766 वर्ग किलोमीटर

जनसंख्या Population ⟶ 259648   पुरुष  ⟶ 131125  महिला  ⟶ 128523 

साक्षरता दर literacy rate  ⟶ 79.83% 

तहसीलें Tehsils ⟶ चंपावत, पाटी, पूर्णागिरि, लोहाघाट, बाराकोट

उप तहसीलें  ⟶ मंच, पुल्ला

विकासखंड Block ⟶ चंपावत, लोहाघाट, बाराकोट, पाटी 

विधानसभा सीटें  ⟶ चंपावत एवं लोहाघाट

 चंपावत के दार्शनिक स्थल Tourist place in district Champawat Uttarakhand

नौ ढुंग्गाघर: नौ पत्थर का मकान यह चंपावत शहर से 2 किमी० की दूरी पर चंपावत पिथौरागढ़ मोटर मार्ग में तल्ली मांदली गांव में स्थित है। इस मकान की खासियत यह है, कि इसको किसी भी कोने से देखने पर नौ ही पत्थर मिलते हैं।  

एक हथिया नौला: यह ऐतिहासिक धरोहर चंपावत से 4 किमी० दूर पर स्थित है। कहा जाता है कि जब चंद राजाओं ने जगन्नाथ नामक मिस्त्री से बालेश्वर मंदिर का निर्माण कराया और मिस्त्री का दाहिना हाथ कटवा दिया था। जिससे बालेश्वर मंदिर की कला का अन्य प्रचार प्रसार ना हो सके। तब मिस्त्री ने अपनी पुत्री कुमारी कस्तूरी की मदद से बालेश्वर मंदिर से भी ज्यादा भव्य और कलात्मक एवं ऐतिहासिक एक हथिया नौला का निर्माण कर राजाओं का घमंड छोड़ दिया। एक हथिया नौला कलात्मक दृष्टि से बहुत ही अद्भुत नमूना है। 

लोहाघाट चंपावत  Lohaghat champawat : चंपावत से 11 किमी की दूरी पर लोहा वती नदी के तट पर स्थित है। लोहाघाट को चंपावत का हृदय कहा जाता है। यहां का वातावरण शांत एवं प्राकृतिक सौंदर्य आकर्षित है। यह  नगर अपने ऐतिहासिक वैभव के लिए प्रसिद्ध है। 

बाणासुर का किला चंपावत Banasur ka kila champawat: लोहाघाट से 5 किलोमीटर दूरी पर कर्णकरायत के समीप एक शिखर मैं स्थित है। बाणासुर राजा बलि का सबसे बड़ा पुत्र था।  इस किले के नीचे एक गुफा है। इसके अंदर जाने के लिए सीढ़ियां बनी हुई है बाणासुर शिव का अनन्य भक्त माना जाता था। 

टनकपुर चंपावत Tanakpur champawat: चंपावत से 72 किमी० दूरी पर स्थित टनकपुर जिले का सर्वाधिक आबादी वाला नगर है। इस का प्राचीन नाम ग्रास्टीनगंज था। प्राचीन बरमदेव मंडी किसी नगर में स्थित थी एक मान्यता यह भी है कि इस क्षेत्र में पूर्णागिरि धाम होने के कारण इसको कर मुक्त रखा था चंद्र काल में कर माफी को टण कहा जाता था। इसके कारण का नाम टणकपुर वह बाद में टनकपुर हो गया। 

बालेश्वर महादेव Baleshwar Mahadev: चंपावत नगर के बीचो-बीच स्थित इस मंदिर समूह में शिव के अलावा कई अन्य मूर्तियां भी स्थित है। जहां मंदिर सिर्फ कला की दृष्टि से जिले का सर्वोत्कृष्ट मंदिर है। यह मंदिर शिखर शैली में निर्मित है। इन मंदिर समूह का निर्माण 1272 में चंद्र राजाओं ने कराया था। इन मंदिरों की नक्काशी उस समय की कलात्मक भव्यता प्रदर्शित करती है।
 
देवीधुरा Devidhura Uttarakhand: लोहाघाट से 58 किलोमीटर की दूरी पर समुद्र तल से 500 मीटर की ऊंचाई पर स्थित देवीधुरा बाराही धाम के नाम से प्रसिद्ध है। रक्षाबंधन के अवसर पर यहां पर अषाढ़ी कौशिक मनाया जाता है। जिसे भगवान मेले के नाम से भी जाना जाता है इस मेले में होने वाले पाषाण युद्ध को देखने के लिए देश-विदेश से लोग आते हैं। 

कहा जाता है कि बहराइच धाम पूर्णागिरि का ही एक सिद्ध पीठ है जहां चंपा देवी वह ललिता ध्वजा महाकाली की प्रतिष्ठा चंद राजाओं द्वारा कराई गई थी। यहां की देवी को वाराही देवी के नाम से जाना जाता है।
प्राचीन कथाओं के अनुसार शुरुआत में यहां  किसी एक व्यक्ति के प्रतिवर्ष बलि देने की परंपरा थी।  कालांतर में किसी परंपरा को बंद कर पत्थर युद्ध की वर्तमान परंपरा शुरू की गई इस युद्ध में गांव के लोगों द्वारा भाग लिया जाता है। और एक व्यक्ति के बराबर रक्त बहाया जाता हैं।  

पूर्णागिरी मंदिर Purnagiri Mandir: समुद्र तल से 300 मीटर की ऊंचाई पर टनकपुर से 20 किलोमीटर की दूरी पर पूर्णागिरि पहाड़ी की चोटी पर स्थित है। यह 108 सिद्ध पीठों में से एक है। यहां माता सती की नाभि की पूजा होती है। यहां उत्तराखंड का सबसे लंबे समय तक चलने वाले मेले का आयोजन होता है। यहां पूरे वर्ष देश के विभिन्न भागों से श्रद्धालु मां के दर्शन करने आते हैं। 

पाताल भुवनेश्वर Patal bhuvaneshwar: वारसी नामक गांव में स्थित पाताल रुद्रेश्वर की खोज सन 1993 में की थी कहा जाता है कि 14 वर्षीय बालक के स्वप्न में मां दुर्गा ने दर्शन देकर उसे गुफा के बारे में बताया था। इसके बाद इस गुफा की खोज की गई यह पवित्र गुफा मीठा रीठा साहिब से 6 किलोमीटर उत्तर पूर्व में स्थित है। 

मीठा रीठा साहिब राजस्थान चंपावत से 72 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है कहा जाता है कि गुरु नानक देव ने इस स्थान की यात्रा की थी तथा यहां के गोरखा पंथी जोगियों के साथ आध्यात्मिक विचार परामर्श किया था यह स्थान देयुरी गांव के निकट लुधिया एवं राठिया नदी के संगम पर स्थित है इस स्थान पर 1960 में गुरुद्वारे का निर्माण किया गया था। 

मायावती आश्रम Mayawati ashram : यह स्थान लोहाघाट से 9 किलोमीटर की दूरी पर हरे-भरे जंगल के बीच बसा हुआ है इस स्थान पर स्वामी विवेकानंद को आध्यात्मिक शांति की प्राप्ति हुई तथा उनके द्वारा 1901 में रामकृष्ण शांति मठ की स्थापना की गई थी इससे पूर्व इस स्थान पर अद्वैत आश्रम था। 

ग्वाल देवता: चंपावत के गोरिल चोर मैदान के निकट इस मंदिर के देवता को गोरिल और गोल देवता के नाम से भी जाना जाता है। जिला चंपावत में क्षेत्र की बड़ी मान्यता है। इन्हें न्याय के अधिष्ठाता देवता के रूप में जाना जाता है। यह मान्यता है, कि अन्याय एवं क्रूरता से पीड़ित असहाय व्यक्तियों द्वारा याद किए जाने पर ग्वाल देवता शीघ्र ही न्याय प्रदान करते हैं। 


District Champawat Uttarakhand ke Pramukh mele  जिला चंपावत के प्रमुख मेले

1.  देवीधुरा का बग्वाल मेला। 2. चौतोल मेला 3. पूर्णागिरि मेला  4. मंडलक का बग्वाली मेला  5. पंचेश्वर का उत्तरायणी मेला  6. गढ़मुक्तेश्वर मेला  7. नाखरूंघाट का मेला  8. मानेश्वर का मेला  9.  झूमाधूरी का मेला  10. देवी धार सिद्धपीठ मेला