Pauri-Garhwal


 Pauri Garhwal पौड़ी गढ़वाल |Pauri Garhwal University | जल विधुत परियोजना | पौड़ी जिले के प्रमुख मेले|Tourist place in pauri


Pauri Garhwal पौड़ी गढ़वाल : समुद्र तल से 1650 मीटर की ऊंचाई पर कंडोलिया पहाड़ी की ढाल पर स्थित Pauri पौड़ी बहुत ही सुंदर हिल स्टेशन है। 

1815 से 1840 तक ब्रिटिश गढ़वाल की राजधानी श्रीनगर रही 1840 में राजधानी श्रीनगर से पौड़ी में स्थानांतरित करने के बाद पौड़ी को ब्रिटिश गढ़वाल का एक जिला बनाया गया स्वतंत्रता के बाद 1970 में  पौड़ी Pauri को गढ़वाल मंडल का मुख्यालय बनाया गया।  

Pauri Garhwal पौड़ी गढ़वाल का सर्वोच्च शिखर झंडी धार है 1992 में इसे हिल स्टेशन घोषित किया गया 1960 में इससे काटकर चमोली जिले  तथा 1997 में रुद्रप्रयाग जिले की स्थापना की गई। 

पौड़ी जनपद के श्रीनगर में हेमवती नंदन बहुगुणा विश्वविद्यालय परिसर के अतिरिक्त घुड़दौड़ी में इंजीनियरिंग कॉलेज स्थित है रांसी में एक स्टेडियम का निर्माण किया गया है जो एशिया में दूसरा सबसे ऊंचाई पर स्थित स्टेडियम है 24 दिसंबर 2001 को पौड़ी को देवप्रयाग के पुल से जोड़ा गया है। 

मुख्यालय → पौड़ी गढ़वााल Pauri Garhwal 

क्षेत्रफल → 5230  वर्ग किमी 

जनसंख्या → 687271  पुरुष → 326829  महिला  → 360442

तहसीलें → पौड़ी, श्रीनगर, लैंसडाउन, कोटद्वार, थलीसौंण,  धुमाकोट, चौबट्टाखाल, सतपुली, यम्केश्वर, जाखणीखाल, बीरोंखाल, चौकीसैण, रिखणीखाल 

विकासखंड → पौड़ी, कोट, कल्जीखाल, खिर्सु, पाबौ, एकेश्वर, जहरीखाल,  थलीसौंण,  यमकेश्वर, बीरोंखाल, रिखणीखाल, पोखड, नैनीडांडा, द्वारीखाल, दुगड्डा

विधानसभा सीटें →  यमकेश्वर, पौड़ी, श्रीनगर, चौबट्टाखाल, लैंसडाउन, कोटद्वार  

पौड़ी गढ़वाल पिन कोड Pauri Garhwal pincode  246001


 Pauri Garhwal पौड़ी जिले के प्रमुख दर्शनीय स्थल

श्रीनगर 

 श्रीनगर  पौड़ी से 30 किमी की दूरी पर अलकनंदा नदी के बाएं तट पर बसा हुआ है श्रीनगर की स्थापना 1358 में गढ़वाल नरेशो द्वारा की गई थी लेकिन 1803 ई० मैं आए भूकंप ने इस नगर को बहुत नुकसान हुआ श्रीनगर में 1804 से 1815 तक गोरखाओ का तथा 1815 से अंग्रेजों के अधिकार रहा है 1894 मैं गौना झील के टूटने से अलकनंदा में आई बाढ़ ने इस नगर को तहस-नहस कर दिया था जिसके बाद नगर को थोड़ा ऊंचाई पर बसाया गया जो वर्तमान में है

 1940 में अंग्रेजों ने यहां से अपनी राजधानी पौड़ी स्थानांतरित कर दी स्वतंत्रता के बाद यह पौड़ी जिले वे शामिल कर लिया गया 1973 में यहां गढ़वाल विश्वविद्यालय की स्थापना की गई मालाराम का प्रसिद्ध संग्रहालय भी श्रीनगर में स्थित है। 

धारी देवी मंदिर

श्रीनगर से लगभग 14 किमी दूर पर कलियासौड़ मे अलकनंदा के बाएं तट पर मां धारी देवी का  मंदिर स्थित है यह मंदिर काली देवी को समर्पित है लोगों का मानना है कि जैसे जैसे दिन गुजरता है इस मूर्ति में बदलाव होता है श्रीनगर जल विद्युत परियोजना के निर्माण से अलकनंदा में बनी झील के डूबे क्षेत्र में सिद्ध पीठ धारी देवी मंदिर की प्राचीन शीला और मंदिर भी आ गये  सिद्ध पीठ धारी देवी का नया मंदिर प्राचीन स्थल से ठीक 21 मीटर की ऊंचाई पर निर्माण किया गया है। 

सोम का भाड़ा 

देवलगढ़ स्थित सोम का भाड़ा स्मारक प्राचीन समय में राजाओं की राजधानी थी स्मारक की दीवारों पर  कूटलिपि अंकित है देवलगढ़ में सोम का भाड़ा स्मारक के अलावा प्राचीन नाथ सिद्धों की गुफाएं भी है जिन पर शिलालेख विद्यमान है। 

केशोराय मठ

श्रीनगर के पास स्थित इस मठ का निर्माण महिपति शाह के शासनकाल में केशो राय ने कराया था  केशो राय के नाम पर ही इस मठ का नाम रखा था लगभग 800 वर्ष पूर्व जब केशव राय बद्रीनाथ की यात्रा पर आए थे तो अत्यधिक थक जाने के कारण इसी स्थान पर सो गए तब स्वपन में बद्री भगवान ने उन्हें आगे ना बढ़ने की आज्ञा दी और उसी स्थान पर जमीन में अपनी मूर्ति होने की सूचना दी उसी मूर्ति को केशव राय ने निकाल कर वहीं पर स्थापित किया था।  

शंकरमठ

गंगा के तट पर केदार घाट के ऊपर स्थित यह मंदिर नगर के प्राचीन मंदिरों में से एक है यह  मंदिर श्रीनगर शहर से 03 किमी की दूरी पर स्थापित है ऐसा विश्वास है कि इसका निर्माण आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा किया गया था मंदिर के गर्भ गृह में भगवान विष्णु और महालक्ष्मी की प्रतिमाएं स्थित है। 

कमलेश्वर मंदिर

कमलेश्वर मंदिर पौड़ी जिले में पुत्र दाता मंदिर के रूप में प्रसिद्ध है इसका निर्माण शंकराचार्य द्वारा किया गया था इस स्थान पर प्रभु श्री राम ने भगवान शिव की एक हजार कमल के फूलों से उपासना की थी भगवान राम को ऐसा लगा कि एक फूल कम है तब उन्होंने अपनी एक आंख भेंट कर दी यहां संतान चाहने वाले लोग बैकुंठ चतुर्दशी की रात्रि को घी के  दीपक लेकर खड़े रहते हैं। 

कोटद्वार

कोटद्वार को गढ़वाल का प्रवेश द्वार कहते है जो समतल भूमि पर बसा है यहां पौड़ी गढ़वाल  Pauri Garhwal जिले का एकमात्र रेलवे स्टेशन है खोह नदी के दाहिने ओर बसा हुआ है इसके पास ही मोरध्वज का किला है यहां पर पुराने गढ़ो के खंडहर और  भवन अवशेष मौजूद हैं 

कण्वाश्रम

कोटद्वार से लगभग 10 किमी दूर स्थित शिवालिक श्रेणी के हेमकूट और मणिकूट पर्वतों के मध्य मालिनी नदी के तट पर स्थित है यह स्थान ऐतिहासिक तथा पुरातात्विक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है वर्तमान काल में यह चौकीघाट के नाम से प्रसिद्ध है प्राचीन काल में यह वैदिक शिक्षा एवं सांस्कृतिक प्रचार प्रसार का केंद्र था महाकवि कालिदास ने भी यही शिक्षा ग्रहण कर  अभिज्ञान शकुंतलम की रचना की थी कण्वाश्रम महर्षि गौतम, विश्वामित्र व कण्व की तपस्थली भूमि रही है यह  स्थान  शकुंतला एवं राजा दुष्यंत के   प्रेम तथा भरत के जन्म का  साक्षी है भरत के नाम पर देश का नाम भारत पड़ा था। 

कालागढ़

कोटद्वार से 48 किमी दूर स्थित कालागढ़ प्रकृति प्रेमियों के लिए एक आदर्श स्थल है यहां रामगंगा नदी पर निर्मित बांध दर्शनीय है। 

सिद्धबली मंदिर

खोह नदी के तट पर हनुमान जी का प्रसिद्ध मंदिर कोटद्वार से मात्र 2 किमी की दूरी पर स्थित है कहां जाता है कि एक सिद्ध बाबा को हनुमान जी की साधना करने से सिद्धि प्राप्त हुई थी सिद्ध बाबा द्वारा यहां बजरंगबली की एक विशाल प्रतिमा का निर्माण किया गया इस से इसका नाम सिद्धबली पड़ा

दुगड्डा

कोटद्वार से 16 किमी उत्तर में लंगूर और सिलगाड के संगम पर स्थित दुगड्डा को 19वीं शताब्दी में पंडित धनीराम मिश्र ने अपने खेत में बसाया था जो कि ब्रिटिश काल में गढ़वाल का एक प्रमुख व्यापारिक एवं राजनीतिक केंद्र था पंडित जवाहरलाल नेहरु 1930 में पहली बार दुगड्डा यात्रा में आए थे। 

बिनसर महादेव

पौड़ी और चमोली के बॉर्डर पर दुधातोली श्रेणी पर स्थित बिनसर महादेव का प्राचीन मंदिर अपनी पुरातत्व समृद्धि के लिए प्रसिद्ध है इसी देवस्थल को तालेश्वर दान पत्रों में वीरणेश्वर स्वामी कहा गया है कार्तिक पूर्णिमा को यहां बड़ा मेला लगता है जिसमें  गढ़वाल कुमाऊं के लोग सम्मिलित होते हैं।  

नीलकंठ महादेव 

ऋषिकेश से 5 किलोमीटर दूर पौड़ी जनपद में शुंभ निशुंभ नामक दो पर्वतों के बीच स्थित नीलकंठ महादेव जी का प्रसिद्ध मंदिर स्थित है यह मंदिर भगवान भोले शंकर को समर्पित है इस मंदिर के निकट गंगा जी बहती है। 

लैंसडाउन

कोटद्वार से 45  किलोमीटर की दूरी पर स्थित लैंसडाउन एक बहुत ही सुंदर हिल स्टेशन है यहां पर गढ़वाल रेजिमेंट का मुख्यालय स्थित है लैंसडाउन कब पुराना नाम कालो का डांडा था इस स्थान पर कालेश्वर महादेव का प्रसिद्ध मंदिर है जिसके कारण इस नगर को कालेश्वर भी भाग गया है यहां पर दरबान सिंह नेगी व गब्बर सिंह नेगी का स्मारक म्यूजियम बनाया गया है  टिपन  टॉप और गढ़वाली मैस यहां के प्रमुख दार्शनिक स्थल है। 

ताड़केश्वर महादेव मंदिर

लैंसडौन से 36 किलोमीटर दूरी पर स्थित चकुला खाल  गांव के निकट शिवजी का एक बहुत ही भव्य मंदिर मंदिर है इस स्थान पर ताड़ वृक्षों की अधिकता के कारण इसका नाम ताड़केश्वर पडा था स्कंद पुराण के अनुसार यह स्थान विष गंगा और मधु गंगा दो नदियां के संगम पर स्थित है। 

ज्वालपा देवी मंदिर 

कोटद्वार पौड़ी मोटर मार्ग पर स्थित पाटीसैण से  पांच  किलोमीटर दूरी पर मां ज्वाला देवी का मंदिर स्थित है यह मंदिर दुर्गा माता को समर्पित है यह प्रसिद्ध सिद्ध पीठ ज्वालपा देवी मंदिर नयार नदी के तट पर स्थित है। 

भैरव गढ़ी

गुमखाल से 5 किलोमीटर केतु खाल गांव के ऊपर ऐतिहासिक लंगूर गढ़ गढ़वाल के 52 गढ़ में से एक है इस स्थान पर भगवान भैरव का एक प्रसिद्ध मंदिर स्थित है  लंगूर पर्वत पर होने के कारण इसका नाम लंगूर गढ़ भी है गोरखा के आक्रमण में 28 दिन तक युद्ध होने के बाद भी गोरखे इस किले को परास्त नहीं कर पाए थे। 

देवलगढ़

श्रीनगर से लगभग 20 किलोमीटर दूरी पर  समुद्र तल से 4000 फीट की ऊंचाई पर स्थित देवलगढ़ गढ़वाल के राजाओं की राजधानी रही है इसका प्राचीन नाम जगतगढ़ था अजय पाल द्वारा राजधानी स्थापित कर देवलगढ़ में गुरु सत्य पाल मठ एवं राजेश्वरी मंदिर का निर्माण कराया गया राज राजेश्वरी देवी गढ़वाल के नरेश ओं की कुलदेवी थी। 

पौड़ी गढ़वाल विश्वविद्यालय Pauri Garhwal University

हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय को राज्य विश्वविद्यालय के रूप में पौड़ी जनपद के श्रीनगर में स्थापित किया गया है  हेमवती नंदन बहुगुणा विश्वविद्यालय को 15 जनवरी 2009 को  केंद्रीय विश्वविद्यालयों अधिनियम 2009 द्वारा के द्वारा  केंद्रीय विश्वविद्यालय में परिवर्तित कर दिया गया था उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में हिमालय पर्वतमाला की गोद में बसा विश्वविद्यालय उच्च शिक्षा का एक आवासीय सह संबद्ध संस्थान है। उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र के सातो  जिलों के छात्र यहाँ शिक्षा लेने आते है।   

पौड़ी जिले की प्रमुख जल विधुत परियोजना

श्रीनगर जल विधुत परियोजना यहां परियोजना अलकनंदा नदी पर बनाई गई है 330 मेगा वाट की इस परियोजना का 82 मेगावाट का प्रथम टनल 2008 में चालू कर दिया गया है।  

रामगंगा परियोजना 198 मेगावाट के इस परियोजना का शुभारंभ 1976 में रामगंगा नदी पर पौड़ी गढ़वाल में हुआ था।  

चिला परियोजना 1980 में गंगा नदी पर बनाई गई 144 मेगा वाट की यह परियोजना हरिद्वार से 2 किलोमीटर दूर पौड़ी जिले में स्थित है। 

पौड़ी जिले के प्रमुख मेले 

कण्वाश्रम मेला मेला, तीलू रौतेली का मेला, बिनसर का मेला, लंगूरगढ़ी का मेला, बैकुंठ चतुर्दशी मेला, जाणदा देवी का मेला, घंडयाल देवता मेला, खगोती का मेला, बूंखाल कौथिग, गिंदी का मेला, मुंडेश्वर का मेला, सत्यवान सावित्री मेला, बिल्व केदार का मेला 


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