Nainital ka itihas|Nainital tourism|tourist place in Nainital
नैनीताल का इतिहास Nainital ka itihas
Nainital : सरोवर नगरी या झीलों की नगरी के नाम से प्रसिद्ध नैनीताल Nainital उत्तराखंड के जनपदों में से एक है। यह नगर तीन और से टिफिन टॉप, चायनापीक, लड़ियां कांटा, स्नोव्यू, हांडी गड़ी शेर का डांडा, आदि ऊंची ऊंची पहाड़ियों से घिरा है।
यह नगर समुद्र तल से लगभग 1938 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। विश्व पर्यटन के मानचित्र पर यह एक ऐसा पर्यटन स्थल है, जहां सबसे अधिक झीलें है। इस नगर के बीच में नैनीताल झील Nainital Lak है, जिसका Lake area की लंबाई लगभग 1500 मीटर चौड़ाई, 510 मीटर तथा गहराई 10 से 156 मीटर है।
Nainital तीन ओर से सात पहाड़ियों (आयर पात, देवपात, हाड़ीगदी. चायना पीक, स्नो व्यू, आलमसरिया कांटा और शेर का डांडा) से घिरा हुआ है। नैनीताल की खोज सर्वप्रथम पीटर बैरन ने 1841ई० मैं की थी। नैनीताल जिले में नैनी झील के अलावा आसपास के क्षेत्रों में अन्य झीलें भी है। नैनीताल के मौसम का तापमान वर्ष भर ठंडा रहता है। जिससे यहां के टूरिज्म को बढ़ावा मिलता है।
24 अप्रैल 1884 को काठगोदाम में रेलवे का शुभारंभ किया गया था। 1891 में जिला मुख्यालय बन जाने के बाद इस झील नगरी का तेजी से विकास हुआ। सन् 1900 में नैनीताल में मल्लीताल में सचिवालय भवन का निर्माण किया गया था। राज्य निर्माण के बाद 9 नवंबर 2000 से इसी भवन में उत्तराखंड उच्च न्यायालय को शिफ्ट किया गया है।
Headquarter मुख्यालय → नैनीताल Nainital
Area क्षेत्रफल → 4251 वर्ग किलोमीटर
Population जनसंख्या → 954605 पुरुष → 493666 महिला → 460939
साक्षरता दर → 76.36%
Tahsil तहसीलें → नैनीताल, हल्द्वानी, रामनगर, कालाढूंगी, लालकुआं, धारी, खनस्यूं, कोश्यांकुटौली, बेतालघाट, उप तहसील रामगढ़
Block विकासखंड → हल्द्वानी, रामनगर, कोटाबाग, धारी, बेतालघाट, भीमताल, रामगढ़, ओखलकांडा
विधानसभा सीटें → लाल कुआं, भीमताल, नैनीताल, हल्द्वानी, कालाढूंगी, रामनगर
नैनीताल का पिन कोड → 263002
जिला के प्रमुख दर्शनीय स्थल tourist place in district Nainital
नैना देवी मंदिर Naina Devi Mandir
नैनीताल में नैनी झील के किनारे मल्लीताल के पास मां नैना देवी का भव्य मंदिर स्थित है। प्राचीन नैना देवी के मंदिर का निर्माण श्री मोतीराम शाह जी ने कराया था।
1880 के भीषण भूस्खलन के बाद यह मंदिर नष्ट हो गया था, भूस्खलन मैं दबी हुई मूर्ति को निकालकर वर्तमान स्थान पर नए सिरे से मंदिर का निर्माण कर ज्येष्ठ नवमी सन 1882 में इसकी पुनः स्थापना की गई। माना जाता है, कि नैना देवी के दर्शन मात्र से ही आंखों से जुड़े सभी प्रकार की समस्या दूर हो जाती है।
नैना पीक Naina peak
2611 मी० ऊंचाई पर स्थित यह नैनीताल की सबसे ऊंची चोटी है, यह नैनीताल शहर से 5 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। नैना पीक को ही चाइना पीक भी कहते हैं। यह नैनीताल के प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों में से एक है। यह स्थान यात्रियों के लिए ट्रैकिंग के लिए प्रसिद्ध है। नैना पीक से हिमालय के दर्शन स्पष्ट रूप से दिखाई देते हैं।
स्नो व्यू snow view
स्नोव्यू शिखर नैनीताल के प्रसिद्ध शिखर में से एक है, इस शिखर की ऊंचाई 2270 मीटर है। यहां पैदल वा रज्जू मार्ग द्वारा पहुंचा जा सकता है। यहां के लिए रोपवे मल्लीताल से बनाया गया है स्नोव्यू बहुत ही आकर्षक स्थल है।
भीमताल Bhimtal
त्रिभुज के आकार की बनी यह झील समुद्र तल से 1370 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। नैनीताल से 22 किलोमीटर की दूरी पर स्थित भीमताल की सौंदर्य पूर्ण झील पर्यटकों के लिए भव्य दृश्य प्रदान करती है। मान्यता है कि पांडु पुत्र भीम ने यहां पर तप किया था, जिसके कारण इसका नाम भीमताल रखा गया था। यह झील नैनीताल झील से बड़ी है। झील के मध्य एक दीप है, जिस पर एक रेस्टोरेंट स्थित है। भीमताल स्थित भीमेश्वर महादेव मंदिर की स्थापना राजा बाज बहादुर चंद ने की थी।
हल्द्वानी Haldwani
गोला नदी के तट पर बसा हल्द्वानी शहर 16वीं सदी में चंद्र राजा रूपचंद के राज्य काल में बसाया गया था। हल्द्वानी कुमाऊं का सबसे बड़ा व्यापारी नगर है। हल्दू नाम के पेड़ों की अधिकता के कारण इस नगर का पहले हल्दूलणी नाम था। 1934 में कुमाऊं के कमिश्नर विलियम ट्रेल ने इसका नाम बदलकर हल्द्वानी कर दिया। हल्द्वानी को कुमाऊं को द्वार भी कहा जाता है। देहरादून और हरिद्वार के बाद हल्द्वानी उत्तराखंड का तीसरा सबसे बड़ा नगर निगम है।
भवाली Bhavali
भवाली समुद्र तल से 1106 मीटर की ऊंचाई पर नैनीताल से 11 किलोमीटर की दूर पर क्षिप्रा नदी के तट पर स्थित है। भवाली पर्वतीय हॉल बाजार के लिए प्रसिद्ध है। 19 दिसंबर 2004 को भवानी मैं उत्तराखंड विधिक अकादमी की स्थापना की गई।
कैंची धाम Kainchi Dham
भवाली से 8 किलोमीटर दूरी पर स्थित कैंची धाम को कुमाऊ के फक्कड़ संत बाबा नीम करौली महाराज द्वारा कैची नामक स्थान पर स्थापित किया था। यह स्थल आज तीर्थ पर्यटन का एक महत्वपूर्ण पड़ाव बन गया है। 15 जून 1976 को नीम करोली बाबा की इच्छा के अनुसार भक्तों द्वारा वहां कलश स्थापित कर उनकी मूर्ति की स्थापना की गई थी। तब से वहां प्रतिवर्ष 15 जून को विशाल भंडारे का आयोजन होता है।
मुक्तेश्वर Mukteshwar
साइलेंट सिटी के नाम से प्रसिद्ध मुक्तेश्वर हल्द्वानी से 51 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह नगर फलदार तथा बुरॉस व बांज के घने वृक्षों से घिरा हुआ है। यह स्थान समुद्र तल से लगभग 3000 मी० की ऊंचाई पर स्थित है। 1890 में यहां पर भारतीय पशु चिकित्सा शोध संस्थान की स्थापना की गई थी।
घोड़ाखाल
घोड़ाखाल नैनीताल से लगभग 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। 21 मार्च 1966 को यहां पर घोड़ाखाल सैनिक स्कूल की स्थापना की गई थी। घोड़ाखाल में गोलू देवता का मंदिर स्थित है, इस मंदिर की स्थापना बाज बहादुर चंद द्वारा की गई थी। गोलू देवता को न्याय का देवता भी कहते हैं। कहा जाता है, कि जब किसी व्यक्ति को न्याय नहीं मिलता था तो वह गोलू देवता के दरबार में प्रार्थना पत्र जमा करता था। तथा उसको गोलू देवता न्याय दिलाते थे।
काठगोदाम
काठगोदाम को कुमाऊ का प्रवेश द्वार कहते हैं। इस स्थान पर लकड़ी के गोदाम होने के कारण इसको काठगोदाम नाम से जाना जाता था। काठगोदाम में कुमाऊं का अंतिम रेलवे स्टेशन है। इसकी शुरुआत 24 अप्रैल 1884 को हुई थी। काठगोदाम को गुलाब घाटी के उपनाम से भी जाना जाता है। कुमाऊं क्षेत्र के पहाड़ी इलाकों की यह प्रमुख व्यापारी मंडी है।
रामगढ़
मुक्तेश्वर से कुछ ही दूरी पर स्थित रामगढ़ रसीले फलों के लिए प्रसिद्ध है। रामगढ़ अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है। 1903 में रविंद्र नाथ टैगोर रामगढ़ की यात्रा की थी। इस दौरान उन्होंने गीतांजलि के कुछ अंश रामगढ़ की प्राकृतिक वादियों में बैठकर लिखे थे। महादेवी वर्मा ग्रीष्म काल में इसी स्थान पर निवास करने आती थी। जिससे मीरा कुटीर के नाम से जाना जाता है, इस स्थान को आज संग्रहालय के तौर पर विकसित कर दिया है।
रामनगर
कोसी नदी के तट पर बसा रामनगर को 1850 में कुमाऊं कमिश्नर रेंमजे ने बसाया था। इसलिए इसको प्रारंभ में रैमजे नगर कहते थे। रैमजे को स्थानीय लोग राम जी साहब कहते थे, जिसके परिणाम स्वरूप इस नगर का नाम बाद में रामनगर हो गया था। यहां कॉर्बेट म्यूजियम एवं कार्बेट पार्क का प्रवेश द्वार ढिकाला स्थित है।
गर्जीया
रामनगर से 10 किलोमीटर की दूरी पर रानीखेत मार्ग में गर्जीया देवी मंदिर स्थित है। यहां मंदिर कोसी नदी के बीचो-बीच में स्थित है। इसी मंदिर के पास सीताबनी नामक स्थान है, जहां महर्षि वाल्मीकि आश्रम के अवशेष आज भी मौजूद हैं। गर्जीया के पास ही स्थित ढिकुली कत्यूरियों की राजधानी रही है। ढिकुली से बौद्ध कालीन मूर्तियां भी पाई गई है।
कार्बेट राष्ट्रीय उद्यान
कार्बेट राष्ट्रीय उद्यान की स्थापना 1935 में हेली राष्ट्रीय उद्यान के नाम से हुई थी। 520 वर्ग किमी० में फैलाया इस उद्यान का कुछ भाग पौड़ी जिले में तथा कुछ भाग नैनीताल जिले में आता है। 1957 मे इसका नाम हेली राष्ट्रीय उद्यान से बदलकर कार्बेट राष्ट्रीय उद्यान रख दिया गया था। इस पार्क का प्रवेश द्वार ढिकाला है। यह उद्यान बाघो के लिए प्रसिद्ध है।
Nainital नैनीताल जिले की प्रमुख संस्थान
- राजकीय वेधशाला मोनेरापिक ⟶ नैनीताल
- वन एवं पंचायत प्रशिक्षण अकादमी ⟶ हल्द्वानी
- सुशीला तिवारी फॉरेस्ट कॉलेज ⟶ हल्द्वानी
- कुमाऊँ इंस्टीट्यूट ऑफ इनफॉरमेशन टेक्नोलॉजी ⟶ काठगोदाम
- उत्तराखंड सेंटर क्लाइटमेट चेंज ⟶ नैनीताल
- कुमाऊँ मंडल विकास निगम ⟶ नैनीताल
- हिल्ट्रॉन ⟶ नैनीताल
- मलेरिया शोध एवं उन्मूलन केंद्र⟶ भवाली
- टीवी सेनेटोरियम⟶ भवाली
- प्रशिक्षण एवं सेवायोजन निदेशालय⟶ हल्द्वानी
- उत्तराखंड विद्यालय शिक्षा परिषद् ⟶ रामनगर
- सेंट्रल हिमालय एनवायरमेंट एसोसिएशन⟶ नैनीताल
- इंदिरा गांधी इंटरप्रिटेशन सेंटर⟶ रामनगर
- राष्ट्रीय पद एवं जैविक अनुसंधान ब्यूरो ⟶ भवाली
- राष्ट्रीय शीतजल मत्स्य अनुसंधान संस्थान ⟶ भीमताल
- भारतीय पशु चिकित्सा एवं अनुसंधान संस्थान ⟶ मुक्तेश्वर
- वैक्सीन रिसर्च इंस्टीट्यूट ⟶ नैनीताल
- आर्यभट्ट प्रेक्षक विज्ञान शोध संस्थान ⟶ नैनीताल
- रडार अनुसंधान संस्थान ⟶ नैनीताल
- उत्तराखंड प्रशासनिक प्रशिक्षण अकादमी ⟶ नैनीताल
- स्टेट कैंसर इंस्टीट्यूट ⟶ हल्द्वानी
- लोक संस्कृति संग्रहालय ⟶ भीमताल
- हिमालय संग्रहालय ⟶ नैनीताल
- उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय ⟶ हल्द्वानी
- नैनीताल पर्वतारोहण क्लब ⟶ नैनीताल
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