Uttarakhand ke pramukh mele
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Uttarakhand ke pramukh mele-Major Fairs of Uttarakhand-उत्तराखंड के प्रमुख मेले 

Uttarakhand ke pramukh mele उत्तराखंड के प्रमुख मेल : देवभूमि के नाम से प्रसिद्ध उत्तराखंड Uttarakhand राज्य मैं वर्ष भर विशेष तिथियों पर विभिन्न प्रकार के मेलों का आयोजन होता रहता है। गढ़वाल व कुमाऊं क्षेत्र में उत्तराखंड के प्रमुख मेलों  Uttarakhand ke mele का आयोजन होता है।  

इन मेलों में उत्तराखंड की संस्कृति की झलक मिलती है। यहां पर होने वाले प्रत्येक मेले का विशेष महत्व होता है। उत्तराखंड में मेलो का आयोजन प्राचीन काल से ही होता रहता है। ऐसे ही उत्तराखंड के प्रमुख मेलों  Uttarakhand ke pramukh mele को आज हम विस्तार से समझेंगे इन मेलों से संबंधित जीके के क्वेश्चन आंसर GK question answer को उत्तराखंड के एग्जाम में पूछा जाता है। 

Uttarakhand ke mele उत्तराखंड के प्रमुख मेले


नंदा देवी मेला हिमालय की पुत्री नंदा देवी की पूजा अर्चना के लिए प्रत्येक वर्ष भाद्र शुक्ल पक्ष की पंचमी से अल्मोड़ा, नैनीताल, बागेश्वर आदि जिलों में नंदा देवी मेला शुरू हो जाता है अल्मोड़ा के नंदा देवी परिसर में 30 दिनो तक बहुत बड़ा मेला लगता है पंचमी के दिन केले के तने पर नंदा सुंधा की प्रतिमाएं तैयार की जाती है अष्टमी को प्रतिमाओं की पूजा अर्चना होती है इसके उपरांत नंदा देवी का डोला बाजार में घुमाया जाता है। 

श्रावणी मेला अल्मोड़ा के जोगेश्वर धाम में प्रतिवर्ष श्रवण में 1 माह तक चलने वाला श्रावणी मेल लगता है 12वीं 13वीं शताब्दी में निर्मित जोगेश्वर मंदिरों में इस अवसर पर महिलाएं संतान प्राप्ति के लिए रात भर घी का दीपक हाथ में था में पूजा-अर्चना करती है और मनोकामना हेतु आशीर्वाद मांगते हैं

सोमनाथ मेला अल्मोड़ा के रानीखेत के पास राम गंगा के तट पर स्थित पाली पछाऊं क्षेत्र मासी में वैशाख महीने के अंतिम रविवार को सोमनाथ का मेला शुरू होता है पहले दिन की रात्रि में सल्टिया मेला तथा दूसरे दिन ठुल कौतीक लगता है जिसमें पशुओं का क्रय विक्रय अधिक होता है 

गणनाथ मेला अल्मोड़ा जनपद के गणनाथ में प्रत्येक वर्ष कार्तिक पूर्णिमा को गणनाथ मेला लगता है मान्यता है यहां रात भर पूजा अर्चना चलती रहती है।

स्याल्दे बिखौती मेला प्रतिवर्ष द्वाराहाट अल्मोड़ा में वैशाख माह के पहले दिन बिखौती मेला वह पहले रात्रि को स्याल्दे मेला लगता है इस मेले का आरंभ कटोरी शासनकाल से माना जाता है इस मेले में लोक नृत्य तथा गीत विशेषकर झोड़ें वह भगनौल गाए जाते हैं। 

श्री पूर्णागिरी मेला चंपावत के टनकपुर के पास अन्नपूर्णा शिखर पर स्थित श्री पूर्णागिरी मंदिर में प्रतिवर्ष चैत्र व अश्वनी की नवरात्रों में 30 सेे 40 दिनों तक मेले का आयोजन होता हैं श्री पूर्णागिरी देवी की गणना देवी भगवती के 108 सिद्ध पीठों में की जाती है यहां देवी सती जी की नाभि गिरी थी। 

आषाढ़ी कौथिक बग्वाल मेला  चंपावत के मां बाराही देवी देवीधुरा में प्रतिवर्ष श्रावण मास में आषाढ़ी कौथिक मेला का आयोजन किया जाता है इस मेले का मुख्य आकर्षण रक्षाबधन को आयोजित किए जाने वाला पाषाण युद्ध है इस मेले की प्रमुख विशेषता यह है कि लोग यहां एक दूसरे को पत्थर से मारते हैं। 

लड़ी धुरा मेला यह मेला चंपावत के बाराकोट पम्दा के देवी मंदिर में लगता है मेले का आयोजन कार्तिक पूर्णिमा के दिन होता है इसमें स्थानीय लोग बाराकोट तथा काकड़ गांव मैं धूनी बना कर रात भर गाते हुए देवता की पूजा करते हैं। 

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मानेस्वर मेला चंपावत के मायावती आश्रम के पास मानेस्वर नामक चमत्कारी शिला के समीप इस मेले का आयोजन होता है इस पत्थर की पूजा से पशु विशेषकर दुधारू पशु स्वस्थ रहते हैं। 

थल मेला पिथौरागढ़ के बालेश्वर थल मंदिर में प्रतिवर्ष बैसाखी को यह मेला लगता है  13 अप्रैल 1940 को यहां बैसाखी के अवसर पर जलियांवाला दिवस मनाए जाने के बाद इस मेले की शुरुआत हुई। 

जौलजीबी मेला पिथौरागढ़ के जौलजीबी काली एवं गोरी नदी के संगम पर प्रतिवर्ष कार्तिक महान में जौलजीबी मेला लगता है इस मेले की शुरुआत सर्वप्रथम 1914 में मकर संक्रांति को हुई थी।

चैती बाला सुंदरी मेला उधम सिंह नगर के काशीपुर के पास स्थित कुण्डेश्वरी देवी बाला सुंदरी के मंदिर में प्रति वर्ष चैती का मेला लगता है जो 10 दिनों तक चलता है देवी बाला सुंदरी कुमाऊ के चंद्रवंशी राजाओं की कुलदेवी मानी जाती है। 

विस्सू मेला यहां मेला प्रतिवर्ष उत्तरकाशी मैं विषुवत संक्रांति के दिन लगने के कारण इस मेले को विस्सू मेला कहा जाता है यहां मेला धनुष बाणों से रोमांचकारी युद्धों के लिए प्रसिद्ध है।  

गेंदा कौशिक इस मेले का आयोजन मकर सक्रांति के अवसर पर पौड़ी जिले के यमकेश्वर तथा डाडामंडी, द्वारीखाल के निकट भटपुरी देवी के मंदिर के पास होता है इस मेले में गेंद खेला जाता है मकर सक्रांति के दिन देवी और गेंद की पूजा कर मेले में गेंद को खेला जाता है। 

वैकुंठ चतुर्दशी मेला यहां मेला पौड़ी जिले के कमलेश्वर मंदिर श्रीनगर पर बैकुंठ चतुर्दशी को प्रतिवर्ष लगता है इस दिन श्रीनगर के बाजारों को दुल्हन की तरह सजाया जाता है कालेश्वर मंदिर में पति-पत्नी रात भर हाथ में घी का दीपक जला कर संतान प्राप्ति हेतु पूजा अर्चना करते हैं और मनोकामना पूर्ण होने का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। 

Uttarakhand ke pramukh mele उत्तराखंड के प्रमुख मेले

चंद्रबदनी मेला यह मेला प्रतिवर्ष अप्रैल माह में टिहरी के चंद्रबदनी मंदिर में लगाया जाता है यहां मंदिर गढ़वाल के प्रसिद्ध चार सिद्ध पीठों में से एक माना जाता है। 

रण भूत कौथीग टिहरी गढ़वाल में प्रत्येक वर्ष कार्तिक माह में लगने वाला यह मेला राजशाही के समय विभिन्न युद्धों में मरे लोगों की याद में भूत नृत्य के रूप में होता है इस मेले में युद्ध कला के विभिन्न करतब किए जाते हैं तलवारबाजी से रोंगटे खड़े कर देने वाले कारनामे इस मेले में देखें जा सकते हैं। 

विकास मेला टिहरी गढ़वाल में प्रतिवर्ष विकास मेले का आयोजन किया जाता है इसे विकास प्रदर्शनी के नाम से जाना जाता है। 

गौचर मेला चमोली जिले के ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक केंद्र गोचर में लगने वाला यह औद्योगिक एवं विकास मेला 1943 मैं शुरू किया गया था वर्तमान में पंडित जवाहरलाल नेहरू के जन्म पर शुरू होने वाले इस ऐतिहासिक मेले में उत्तरांचल के विकास से जुड़ी विभिन्न संस्कृतियों को खुलकर प्रदर्शन किया जाता है। 

नुणाई मेला यहां मेला देहरादून के जौनसार क्षेत्र में श्रवण मास में लगता है इसे जंगल में भेड़ बकरियों को पालने वालों के नाम से मनाया जाता है भेड़ बकरियों को चराने वाले रात्रि विश्राम जंगल में बनी गुफाओं में करते हुए पूरा साल जंगल में बिताते हैं जैसे ही इस मेले का समय आता है वह गांव की ओर आने लगते हैं। 

टपकेश्वर मेला देहरादून के देवी धारा नदी के किनारे एक गुफा में स्थित इस शिव मंदिर की मान्यता दूर-दूर तक है मंदिर में स्थित शिवलिंग पर बताएं ऊपर से पानी टपकता रहता है शिवरात्रि पर यहां एक विशाल मेला लगता है। 

भद्र राज देवता का मेल यहां मेला देहरादून के मसूरी से लगभग 15 किलोमीटर दूर पहाड़ी पर लगता है भद्र राज के प्राचीन मंदिर पर भक्ति गाना दूध चढ़ाते हैं इस मेले में पारम्परिक नृत्य होते हैं। 

झंडा मेला  देहरादून में प्रतिवर्ष गुरु राम राय जी के जन्मदिन से शुरू होता है और लगभग 15 दिनो चलता है यहां मेला सन 1699 मैं शुरू हुआ था जिस दिन गुरु राम राय जी देहरादून पधारे थे तब से यह मेला प्रतिवर्ष लगाया जाता है इस मेले में विदेशों से भी अनेक भक्त आते हैं जिनमें हजारों की संख्या में भक्त सम्मिलित होते हैं और झंडे की पूजा करते हैं। 

कुंभ मेला यहां मेला हरिद्वार में गंगा के तट पर प्रत्येक 12 वर्ष बाद गुरु के कुंभ राशि और सूर्य के मेघ राशि पर स्थित होने पर लगता है यह पर्व मकर संक्रांति से गंगा दशहरा तक चलता है इस मेले को मोक्ष पर्व भी कहा जाता है। 

पिरान कलियर बाबा का मेला रुड़की से लगभग 8 किलोमीटर दूर कलियर गांव में प्रतिवर्ष अगस्त माह में एक विशाल मेला लगता है कलियर गांव में सूफी हजरत अल्लाउद्दीन अली अहमद, इमामुद्दीन तथा किलकिली साहब की मजार है यहां प्रतिवर्ष मार्च-अप्रैल में साबिर का उर्स मनाया जाता है जिसे दूर-दूर से श्रद्धालु देखनेआते है। 

उत्तरायणी मेला मकर संक्रांति के अवसर पर कुमाऊं गढ़वाल क्षेत्र के कई नदी घाटों एवं मंदिरों पर उत्तरायणी मेला लगता है इस मेले को घुघुतिया ब्यार भी कहते हैं सन 1921 में इस मेले में मकर संक्रांति के दिन उस समय प्रचलित कुली बेगार प्रथा को बद्री दत्त पांडे के नेतृत्व में समाप्त करने का संकल्प लिया था तथा कुली बेगार के समस्त कागजातों को सरयू नदी में बहा दिया गये थे। 


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