Uttarakhand sankshipt parichay

Uttarakhand sankshipt parichay-उत्तराखंड  संक्षिप्त परिचय

uttarakhand ka itihaas उत्तराखंड का इतिहास

 Uttarakhand उत्तराखंड हिमालय का विभिन्न अंग है। वृत्त हिमालय और गंगा के मैदान के बीच स्थिति इस राज्य का निर्माण  उत्तर प्रदेश से अलग होकर 9 नवंबर 2000 को हुआ था। 

 उत्तराखंड  राज्य का आकार लगभग आयताकार है, पूर्व से पश्चिम तक राज्य की लंबाई 358 किलोमीटर तथा उत्तर से दक्षिण तक राज्य की चौड़ाई लगभग 320 किलोमीटर है।  सांख्यिकी डायरी 2008-09 के अनुसार राज्य का कुल क्षेत्रफल 53483 वर्ग किलोमीटर है। जो भारत के कुल क्षेत्रफल का 1.69% है। भारत के राज्यों के क्रम में उत्तराखंड भारत का 27 वां राज्य है, तथा क्षेत्रफल के दृष्टि से 19वां राज्य व  हिमालय राज्यों के क्रम में उत्तराखंड  Uttarakhand भारत का 11वां स्थान है।  उत्तराखंड की राजकीय भाषा प्रथम हिंदी तथा द्वितीय संस्कृत है। 

 Uttarakhand उत्तराखंड राज्य के उत्तर में वृहत्त हिमालय व पश्चिम में टौंस नदी दक्षिण-पश्चिम में शिवालिक श्रेणियां दक्षिण मध्य एवं दक्षिण पूर्व में तराई क्षेत्र तथा पूर्व में काली नदी राज्य की प्राकृतिक सीमाएं बनाती हैं उत्तराखंड के उत्तर में हिमालय के पार चीन पूरब में नेपाल उत्तर पश्चिम में हिमाचल प्रदेश तथा दक्षिण उत्तर प्रदेश की सीमाएं बनाते हैं।

उत्तराखंड राज्य गठन के बाद उत्तराखंड Uttarakhand को 13 जिलों देहरादून, हरिद्वार, रुद्रप्रयाग, पौड़ी गढ़वाल, उत्तरकाशी, टिहरी गढ़वाल, चमोली, पिथौरागढ़, अल्मोड़ा, उधम सिंह नगर, चंपावत, नैनीताल, बागेश्वर और दो मंडल गढ़वाल मंडल और कुमाऊं मंडल मैं विभाजित किया गया है।  गढ़वाल मंडल के अंतर्गत 7 जिले कुमाऊं मंडल के अंतर्गत 6 जिले आते हैं।

  • उत्तराखंड का क्षेत्रफल  53483 वर्ग किमी (लंबाई 358 किमी चौड़ाई 320 किमी)
  • उत्तराखंड की राजधानी → देहरादून
  • विधानसभा भवन → देहरादून और गैरसैण
  • कुल जनसंख्या 10086292
  • कुल तहसीलें110 
  • उप तहसीलें  18 
  • विकासखंड → 95 
  • नगर निगम 8 
  • न्याय पंचायत 670 
  • ग्राम पंचायत 7950
  • साक्षरता दर 78.40%
  • राज्य में विधानसभा की सीटें 70 +1
  • राज्यसभा सीट  5 


उत्तराखंड  Uttarakhand  की भौगोलिक क्षेत्रों को निम्नलिखित हिस्सों में विभाजित किया गया है।

ट्रांस हिमालयट्रांस हिमालय का विस्तार उत्तराखंड के उत्तर पूर्वी भाग मैं अंतिम सीमा तक है इस क्षेत्र का कुछ भाग भारत में वह कुछ तिब्बत में है उत्तराखंड के उत्तरकाशी, चमोली तथा पिथौरागढ़ जिले इस क्षेत्र में आते हैं इस क्षेत्र की पर्वत श्रेणियों को जैंक्सर श्रेणी भी कहा जाता है। किसके श्रेणियों में माणा, नीति,चोरहोती, दमजन, किंगरी बिंगरी, दारमा, लिपुलेख आदि दर्रा आते हैं। 

वृहत्त हिमालय  वृहत्त हिमालय को मुख्य हिमालय या महान हिमालय या उच्च हिमालय भी कहा जाता है यह लघु हिमालय के उत्तर और ट्रांस हिमालय के दक्षिण में स्थित है प्राचीन ग्रंथों में इसे हिमाद्री कहा जाता था वृहत्त हिमालय श्रेणी को भागीरथी, अलकनंदा, धौलीगंगा, गोरी गंगा आदि नदियां निकलती है महान हिमालय की श्रेणियों में स्थित बंदरपूंछ, सेकंड, यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ, चौखंबा, नंदा देवी, त्रिशूल, पंचकूला आदि श्रेणियां स्थित है उच्च हिमालय के मूलनिवासी भोटिया लोग है इनका मुख्य कार्य पशुपालन है इसके अलावा वे ऊनी हस्तशिल्प कला व जड़ी बूटी आंधियों से संबंधित व्यवसाय भी करते हैं। 

मध्य हिमालय  इसको लघु हिमालय भी कहा जाता है मध्य हिमालय क्षेत्र की ऊंचाई 1200 से 4500 मीटर के बीच है यह पर्वत श्रेणी शिवालिक श्रेणियों के उत्तर तथा वृहत्त हिमालय के दक्षिण में स्थित है मध्य हिमालय क्षेत्र के अंतर्गत चंपावत, नैनीताल, अल्मोड़ा, चमोली, पौड़ी गढ़वाल, रुद्रप्रयाग, टिहरी, उत्तरकाशी तथा देहरादून 9 जिलों में विस्तृत है उत्तराखंड का पामीर कहां जाने वाला दुधातोली श्रृंखला भी मध्य हिमालय के अंतर्गत ही आती है। उत्तराखंड की ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैण भी लघु हिमालय के अंतर्गत आता है ब्रिटिश काल में यहां क्षेत्र चांदपुर परगना में शामिल था। 

दून क्षेत्र  शिवालिक और मध्य हिमालय के बीच पाए जाने वाले क्षेत्र को दून क्षेत्र कहा जाता है इस क्षेत्र में धान की फसल बहुत अच्छी होती है दून घाटियों में भूस्खलन की घटनाएं अधिक होती है राज्य के कुछ प्रमुख दून देहरादून, कोटरीदून, चौखमदून, पातलीदून, कोटारीदून, पछवादूनद व हार की दून आदि हैं। 

शिवालिक श्रेणी  हिमालय के दक्षिण में समानन्तर रूप से विस्तृत बाहरी छोर पर स्थित है भाबर क्षेत्र के बाद उत्तर में स्थित पहाड़ियों को शिवालिक पहाड़ी कहा जाता है इस क्षेत्र में प्राकृतिक वनस्पति और जंगल अधिक पाए जाते हैं किसे प्राचीन ग्रंथों में मैनाक पर्वत कहा जाता था यह खनिज पदार्थ की दृष्टि से सबसे महत्वपूर्ण श्रेणी मानी जाती है। 

गंगा का मैदानी क्षेत्र  उत्तराखंड का हरिद्वार जनपद ही गंगा के मैदानी क्षेत्र मैं आता है हरिद्वार जिले के लक्सर, रुड़की आदि कस्बे इस क्षेत्र में आते हैं यह क्षेत्र सड़क एवं रेल मार्गों से जुड़ा हुआ है यह क्षेत्र अत्याधिक उपजाऊ होता है जिसमें गन्ना, गेहूं, धान आदि की बहुत ही अच्छी फसल होती है। 

तराई क्षेत्र  गंगा के मैदान के उत्तर में पौड़ी गढ़वाल तथा नैनीताल जिलों के दक्षिणी क्षेत्र उधम सिंह नगर जिले के अधिकांश क्षेत्रों को तराई क्षेत्र कहा जाता है इन क्षेत्रों में पाताल तोड़ कुआं पाए जाते हैं इनका निर्माण महीन कणों वाली अवसादो से हुआ होता है लेकिन वर्षा अधिक होने में तथा भूमि के दलदली होने के कारण  यह मैदानी क्षेत्रों से भिन्न होते हैं। 

भाबर क्षेत्र→ शिवालिक सीढ़ियों से जुड़ा हुआ मैदानी भाग भाबर क्षेत्र कहलाता है यह क्षेत्र कृषि योग्य नहीं होता क्षेत्र की भूमि उबड़ खाबड़ और मिट्टी कंकड़ पत्थर तथा मोटे बालू की होती है यहां ज्यादातर जंगली झाड़ियां एवं अन्य प्राकृतिक वनस्पति पाई जाती है।

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राजकीय चिन्ह  उत्तराखंड Uttarakhand का राजकीय चिन्ह एक गोलाकार मुद्रा में तीन पर्वत चोटियों की श्रृंखला और उसके नीचे गंगा की  चाल लहरें अंकित है बीच की चोटी अन्य चोटियों से ऊंची है व इस में अशोक की लाट अंकित है जिसके नीचे मुण्डकोपनिषद से लिया गया वाक्य सत्यमेव जयते लिखा है।  

राजकीय पशु → Uttarakhand उत्तराखंड का राजकीय पशु कस्तूरी मृग है कस्तूरी मृग का वैज्ञानिक नाम मास्इकस काइसोगाॅस्टर है इसको हिमालय मास्क डियर भी कहते हैं कस्तूरी मृग विशेष रुप से फूलों की घाटी उत्तरकाशी केदारनाथ तथा पिथौरागढ़ के क्षेत्रों में पाए जाते हैं कस्तूरी केवल नर मृग मैं पाई जाती है कस्तूरी मेरे का रंग भूरा होता है जिस पर काले पीले धब्बे पाए जाते हैं इसके एक पैर में 4 खुर होते हैं नर मृग की पूंछ छोटी और बाल रहित होती है इसमें सींग की वजह दो बड़े बड़े दांत पाए जाते हैं जो बाहर की ओर निकले होते हैं इनकी औसत आयु लगभग 20 वर्ष होती है 1977 में महरुडी कस्तूरी मृग अनुसंधान केंद्र की स्थापना की गई कस्तूरी मृग संरक्षण के लिए 1982 में चमोली जिले के काॅचुला खर्क मैं एक कस्तूरी मृग प्रजनन एवं संरक्षण केंद्र की स्थापना की गई है। उत्तराखंड में वन्य जीव गणना 2005 के अनुसार कस्तूरी मृगों की संख्या 279 है। 

  राजकीय पक्षी → उत्तराखंड Uttarakhand का राजकीय पक्षी मोनाल है इसको हिमालय का मयूर भी कहते हैं मोनाल का प्रिय भोजन आलू है मोनाल हिमाचल प्रदेश का राज्य पक्षी व नेपाल का भी राष्ट्रीय पक्षी है मोनाल तथा डफिया एक ही प्रजाति के पक्षी हैं लेकिन मोनाल मादा पक्षी है तथा डफिया नर पक्षी होता है नीले काले हरे रंगों के मिश्रण वाले पक्षी की पूंछ हरी होती है मोर की तरह इसके नरभक्षी के सिर पर रंगीन कलगी होती है वह पक्षी अपना घोंसला नहीं बनाता है अपितु किसी चट्टान या पेड़ के छिद्र में अंडे देती है। 

राजकीय पुष्प उत्तराखंड  Uttarakhand का राजकीय पुष्प ब्रह्म कमल है इसका स्थानीय नाम कौंलपह्म है उत्तराखंड में ब्रह्म कमल की 24 प्रजातियां पाई जाती है ब्रह्म कमल मुख्यता फूलों की घाटी, केदारनाथ, शिवलिंग बेस, पिंडारी ग्लेशियर आदि क्षेत्रों में पाया जाता हैं ब्रह्म कमल का वैज्ञानिक नाम सोसूरिया अबवेलेटा है ब्रह्म कमल को महाभारत में सौगन्धिक पुष्प के नाम से जाना जाता था पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस ब्रह्म कमल को केदारनाथ स्थित भगवान शिव को अर्पित करके बाद में प्रसाद के रूप में बांटा जाता है ब्रह्म कमल के पौधे की ऊंचाई 70 80 सेमी होती है इसमें जुलाई से सितंबर तक 3 माह तक फूल खिलते हैं। 

राजकीय वृक्ष  उत्तराखंड Uttarakhand का राजकीय वृक्ष बुरांश है बुरांश एक सदाबहार पर्वतीय वृक्ष है बुरांश का वनस्पतिक नाम रोडोडेन्ड्रान अरबोरियम है गुना से एक पर्वतीय वृक्ष है इसको मैदानों में नहीं हुआ है जा सकता 1500 से 4000 मीटर की ऊंचाई पर मिलने वाले बुरांश के फूल का रंग चटक लाल होता है बुरांश का फूल मैं बहुत औषधीय गुण पाए जाते हैं विनाश के फूलों का जूस हृदय रोग के लिए बहुत ही लाभकारी होता है। 

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