chamoli

chamoli-District chamoli-जनपद चमोली

 Chmoli ka Itihaas चमोली का इतिहास

chamoli : चमोली जनपद की स्थापना 24 फरवरी 1960 में हुई थी, इससे पहले यह पौड़ी गढ़वाल जनपद में शामिल था। 20 जुलाई 1970 को अलकनंदा नदी में बाढ़ आने से चमोली chamoli के अधिकांश राजकीय भवन बह गए थे, जिसके कारण चमोली chamoli का मुख्यालय गोपेश्वर में स्थापित किया गया गोपेश्वर का प्राचीन नाम गोस्थल था।  

गढ़वाल विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने 2002 में मनाली गांव जो तिब्बत से सटा हुआ है, यहां पर बहुत से मृदभांड और सोने के मुकुट खोजे थे। अलकनंदा नदी के किनारे डूंगरी गांव में ग्वारख्या उडियार मैं मानव भेड़ लोमड़ी बारहसिंघ आदित्य रंगीन चित्र प्राप्त हुए थे। 


मुख्यालय → चमोली गोपेश्वर

 क्षेत्रफल  8030 वर्ग किलोमीटर 

जनसंख्या → 391605 पुरुष → 193991 महिला → 197614

तहसील → जोशीमठ, कर्णप्रयाग, गैरसैण, चमोली, थराली, घाट, पोखरी, आदिबद्री, जिलासू, नंदप्रयाग, नारायण बगड़, देवल 12 

विकासखंड → जोशीमठ, कर्णप्रयाग, गैरसैण, थराली, दसौली, पोखरी, घाट, देवल, नारायणबगड़

विधानसभा सीटें → बद्रीनाथ, कर्णप्रयाग, थराली


chamoli चमोली जिले के प्रमुख दार्शनिक स्थल 


बद्रीनाथ : समुद्र तल से 3133 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह अत्यधिक ऊॅचे‌ नीलकंठ पर्वत शिखर के पृष्ठ पर नर एवं नारायण नामक दो पर्वत श्रेणियों के मध्य में स्थित है यहां चार धामों में सबसे अंतिम धाम है अलकनंदा नदी के तट पर स्थित बद्रीनाथ मंदिर मिश्रित शैली में बना हुआ है बद्रीनाथ मंदिर को  तीन भागों में बांटा गया है सिंह द्वार मंडल और गर्भ ग्रह मुख्य प्रतिमा भगवान विष्णु जी की चिंतन मुद्रा में काले रंग की है लेकिन खंडित है मूर्ति के खंडित होने का मूल कारण नारद कुंड में पड़े रहने से है जिसे शंकराचार्य ने निकालकर स्थापित करवाया था मुख्य मूर्ति के मध्य में नर नारायण की दाहिनी कुबेर की एवं बाये नारद की प्रतिमा स्थित हैं।  

 इस मंदिर का निर्माण गढ़वाल वंश के प्रारंभिक राजा अजय पाल के शासनकाल में हुआ था परंतु पूर्ण रूप से भव्य मंदिर बनाने का श्रेय कत्यूरी वंश के राजाओं को जाता है बद्रीनाथ धाम के पुजारी दक्षिण भारत में स्थित मालाबाद क्षेत्र के आदिगुरू शंकराचार्य के वंशजों में से होते हैं जिन्हें रावल कहा जाता है यहां मंदिर प्रतिवर्ष अप्रैल-मई के महीने में खुलता है तथा शरद ऋतु मैं नवंबर के तृतीय सप्ताह में बंद हो जाता है बद्रीनाथ मंदिर के निकट पांच प्रमुख कुंड स्थित है तृप्त कुंड, नारद कुंड, सत्यपथ कुंड, त्रिकोण कुंड और मानुषी कुंड इन कुंडों में स्नान करने का बहुत ही पवित्र महत्व है। 

आदिबद्री : कर्णप्रयाग से 21 किलोमीटर दूरी पर स्थित 16 छोटे बड़े पिरामिड के आकार के मंदिरों का समूह है इन मंदिरों का निर्माण शंकराचार्य द्वारा किया गया था यहां के मुख्य मंदिर में भगवान विष्णु की प्रतिमा 1 मीटर ऊंची है जिसे काले पत्थर में निर्मित किया गया है भगवान विष्णु की आदिबद्री के रूप में पूजे जाते हैं यहां के पुजारी थापली गांव के थपलियाल ब्राह्मण होते हैं।

भविष्यबद्री : जोशीमठ से 18 किलोमीटर दूर सुभाई गांव में स्थित है यहां भगवान विष्णु के आधे आकृति की पूजा की जाती है कहा जाता हैं की घोर कलयुग आने पर बद्री विशाल लुप्त हो जाएंगे और तब यह मूर्ति पूर्ण रूप धारण कर लेगी तथा बद्री विशाल के रूप में पूजी जाएगी।

वृद्धबद्री : जोशीमठ से 7 किलोमीटर दूरी पर स्थित अति मठ स्थान पर आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा बदरीनाथ की मूर्ति स्थापित की गई थी कहते हैं जहां पर भगवान विष्णु ने नारद जी वृत्त के रूप में दर्शन दिए थे जिसके कारण यह वृद्ध बद्री कहलाया गया।

योगबद्री : जोशीमठ से 20 किलोमीटर दूरी पर स्थित पांडुकेश्वर  में भगवान विष्णु की ध्यानकृत मूर्ति होने के कारण इसका नाम ध्यान बद्री या योग बद्री के नाम से जाना जाता है यहां पर पांडव शिला भी स्थित है शीतकाल में कपाट बंद होने के कारण बद्रीनाथ की चतुर्मुखी मूर्ति यहां पर लाई जाती है।

विष्णुप्रयाग : जय विजय पर्वत के मध्य अलकनंदा तथा विष्णु गंगा के संगम पर समुद्र तल से 1372 मीटर की ऊंचाई मैं विष्णुप्रयाग स्थित है ऐसा माना जाता है कि नारद मुनि ने इस स्थान पर भगवान विष्णु की पूजा की थी यहां पर विष्णु कुंड के निकट विष्णु मंदिर स्थित है। 

कर्णप्रयाग : ऋषिकेश बदरीनाथ मार्ग पर स्थित समुद्र तल से 788 मीटर की ऊंचाई पर स्थित पंच प्रयाग में से कर्णप्रयाग एक है अलकनंदा एवं पिण्डर नदी के संगम पर स्थित कर्णप्रयाग का नाम कर्ण के नाम पर रखा गया इसी स्थान पर भगवान सूर्य ने कर्ण को कवच कुंडल प्रदान किया थे यहां पर उमा देवी का मंदिर भी स्थित है। 

चांदपुर गढ़ी : गढ़वाल के 52 गढ़ों में से एक है यह 9 वीं सदी की मानी जाती है  लघु गोलाकार पहाड़ी पर स्थित चांदपुर गढ़ी मैं पंवार वंश के राजा कनक पाल ने गढ़ के राजा भानु प्रताप की पुत्री से विवाह करके अपने राज्य की नींव रखी थी। 

वसुंधरा प्रपात : चमोली chamoli के अंतिम गांव माणा से आगे 5 किलोमीटर दूर नर पर्वत पर लगभग 145 मीटर ऊंचाई से गिरने वाले दो जलप्रपात वसुंधरा के नाम से जाने जाते हैं इस जलप्रपात से थोड़ा सा आगे ही माणा गांव में सरस्वती नदी पर भीम पुल बना हुआ है।

गैरसैंण : गढ़वाल एवं कुमाऊ का ज्यामितीय केंद्र बिंदु है चमोली जिले District chamoli में स्थित गैरसेंण को उत्तराखंड की प्रस्तावित राजधानी के रूप में घोषित किया गया है गैरसैण चाय के बागानों  के लिए प्रसिद्ध है  यहां राज्य का दूसरा विधानसभा भवन बनाया गया है कहा जाता है कि यह क्षेत्र गैड़ नामक गांव के नीचे स्थित समतल भूमि है जिसके कारण इसका नाम गैरसैण पड़ा था। 

ग्वालदम : प्राकृतिक दृश्यों के लिए प्रसिद्ध समुद्र तल से लगभग 1960 मीटर की ऊंचाई पर एक टीले के रूप में बसा ग्वाल धाम बागेश्वर की सीमा से लगा हुआ देवदार बांज बुरांश के घने वृक्षों से ढका सेब एवं चाय उत्पादन के लिए प्रसिद्ध स्थान है यहां पर कुमाऊनी गढ़वाली संस्कृति दोनों ही देखने को मिलती है ग्वालदम से मात्र 8 किलोमीटर दूरी पर स्थित प्रसिद्ध बधाणगढी़ है यहां से हिमालय का दृश्य सुंदर दिखाई देता है।

नंदप्रयाग : समुद्र तल से 914 मीटर की ऊंचाई पर स्थित नंदप्रयाग अलकनंदा एवं मंदाकिनी नदी के संगम पर स्थित है राजा नंद के नाम पर यहां का नाम नंदप्रयाग रखा गया

जोशीमठ : प्राचीन काल में इसे योषि कहां जाता था इस स्थान पर आदि गुरु शंकराचार्य ने तपस्या किया थी तथा यहां पर एक मठ की स्थापना की थी जोशीमठ का नाम संस्कृत शब्द के ज्योर्तिमठ से लिया गया इसका अर्थ शिव के ज्योतिर्लिंग का स्थान होता है हिंदुओं का यह विश्वास है कि शरद ऋतु में भगवान बद्रीनाथ यहां पर विश्राम करते हैं शंकराचार्य द्वारा स्थापित भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार का एक मंदिर बनाया गया है यहाँ पर बाबा बर्फानी के दर्शन हेतु टिम्मरसैण गुफा प्रसिद्ध है।

हेमकुंड साहिब : जोशीमठ से 29 किलोमीटर दूर तथा समुद्र तल से 4529 मी० की ऊंचाई पर स्थित हेमकुंड को हवलदार सोहन सिंह ने 1930 मैं खोज की थी हेमकुंड झील में हाथी पर्वत एवं सप्त ऋषि पर्वतों से पानी आता है जिससे यहां से हिमगंगा नामक नदी निकलती है हेमकुंड का पुराना नाम दण्ड पुष्करणी था हेमकुंड झील के पास एक गुरद्वारा बना हुआ है यह सिक्कों का तीर्थ स्थल है यह मान्यता है कि सिखों के दसवें गुरु गोविंद सिंह जी ने पूर्व जन्म में इस झील के निकट चिंतन किया था यह स्थान हिंदुओं के लोकपाल तीर्थ एवं दांडी पुष्करणी तीर्थ नाम से प्रसिद्ध है यहां पर सिख अथवा हिंदू दोनों दर्शन हेतु आते हैं।

रूपकुंड : रहस्यताल या कंकाल झील के नाम से प्रसिद्ध रूपकुंड समुद्र तल से 4580 मीटर की ऊंचाई पर त्रिशूल पर्वत की तलहटी पर बनी यह झील 500 मीटर व्यास के कटोरे के आकार की है यहां पर कई नर कंकाल प्राप्त हुए हैं जो आश्चर्य बने हुए हैं नर कंकालों की खोज सर्वप्रथम 1942-43 में वन विभाग द्वारा की गई थी।

फूलों की घाटी : फ्रैंक स्माइथ द्वारा 1931 में खोजी गई फूलों की घाटी गोविंदघाट से 19 किलोमीटर तथा घांघरिया नामक स्थान से 5 किलोमीटर दूर असंख्य फूलों से सजा लगभग 4 किलोमीटर के क्षेत्रफल में फैला विभिन्न प्रकार के असंख्य फूलों की घाटी स्थित है 6 नवंबर 1982 को इसको नेशनल पार्क बनाया गया तथा 14 जुलाई 2005 को फूलों की घाटी को विश्व धरोहर समिति द्वारा इसको विश्व धरोहर की सूची में शामिल कर दिया गया फूलों की घाटी के मध्य से पुष्पावती नामक नदी बहती है स्कंद पुराण में इसको  नंदनकानन नाम से संबोधित किया गया है।

औली : जोशीमठ से 15 किलोमीटर दूरी पर स्थित औली हरी-भरी मखमली घास एवं शीतकाल में हिम क्रीड़ा तथा पर्यटक स्थल के रूप में विश्व में प्रसिद्ध है यहां सरकार द्वारा खिलाड़ियों व पर्यटकों  हेतु फाइबर गिलास के छोटे-छोटे स्कीलिफ्ट तथा स्नोबीटर्स बनाए गए हैं औली जाने के लिए 1993 में रोपवे का भी निर्माण किया गया है यहां पर अंजनी माता का प्रसिद्ध मंदिर भी स्थित है।

नंदा देवी : जोशीमठ से मलारी मार्ग पर लगभग 21 किलोमीटर दूरी पर स्थित नंदा देवी का सिद्ध पीठ मंदिर है 1982 में किसको राष्ट्रीय पार्क बनाया गया तथा 1988 में इसको राष्ट्रीय विरासत स्थल के रूप में पंजीकृत किया गया यहां पर विश्व की कई लुफ्त जंतु प्रजातियां पाई जाती है नंदा देवी शिखर की ऊंचाई 7817 मीटर तथा यह भारत का दूसरा सबसे ऊंचा शिखर है।

माणा : चमोली chamoli मैं स्थित माणा गांव भारत की सीमा पर बसे अंतिम गांव में से एक है पुराणों में इसे मणिभद्र पुरी के नाम से जाना जाता था इस स्थान पर अलकनंदा एवं सरस्वती नदी का संगम होता है माणा गांव के समीप मुचकुंद गुफा, गणेश गुफा, व्यास गुफा व भीम पुल मुख्य रूप से दार्शनिक स्थल है पुराणों के अनुसार कहा गया है कि महर्षि व्यास जी ने व्यास गुफा में बैठकर भागवत कथा का मौखिक तौर पर कहा था और उसको गणेश गुफा में भगवान गणेश जी ने लिखा था यहां पर घटोत्कच मंदिर भी है तथा सरस्वती नदी पर बना पाषाण शिला या भीम पुल विश्व में प्रसिद्ध है।

District chamoli चमोली जिले के प्रमुख मेले


विखोत का मेला, पूरा का मेला, नौठ का मेला, नौटी गांव का मेला, नंदकशरी का मेला, थराली मेला, तोमश्वर का मेला, नंदा जात यात्रा का मेला, नौटी का मेला, अठवाड़ का मेला, चोपता मेला, कुलसारी मेला, पांचाली का  मेला, सिरगुर का मेला, गैरसैण मेला, गोचर मेला, जसोली का मेला, धरैदा का मेला, अनुसूया माता का मेला, नागनाथ का मेला, हरियाली का मेला, गोंडा का मेला, चांदपुर का मेला, बम्पा का मेला 

District chamoli चमोली जिले की प्रमुख जल विधुत परियोजना 


विष्णु गाड पीपलकोटी परियोजना
नंदप्रयाग परियोजना
लंगासू  परियोजना
अमृत गंगा परियोजना
 वोवला नंदप्रयाग परियोजना
 देवसारी बांध परियोजना
 देवल परियोजना
 मेल खेत परियोजना
 खेल गंगा परियोजना
 बांग एवं घेस परियोजना
उर्गम परियोजना
 राजवक्ती परियोजना 
 बनाला परियोजना
 ऋषि गंगा परियोजना
 लाटा तपोवन परियोजना
 विष्णुगढ़ परियोजना
 मनेरी परियोजना
 गौना ताल परियोजना

District chamoli चमोली जिले के प्रमुख बुग्याल 


 वेदनी बुग्याल, पातरान चौणियां बुग्याल, क़्वारी पास बुग्याल, गौरसों बुग्याल, नंदकानन बुग्याल, रताकोण बुग्याल, लक्ष्मीवन बुग्याल, जलीसेरा बुग्याल, भेटी बुग्याल, खादू बुग्याल  ,लाता बुग्याल, मनणी बुग्याल, घसतोली बुग्याल, बर्मी बुग्याल

District chamoli चमोली जिले के प्रमुख गुफाएं


स्कंद गुफा, गणेश गुफा, ग्वारख्या उडियार, व्यास गुफा, मुचकुंद गुफा, भृंग गुफा, गंगतोली गुफा, रिखु उडियार, टिम्मरसैण  गुफा, राम गुफा

District chamoli चमोली जिले के प्रमुख दर्रे


नीति दर्रा, माणा  दर्रा , किंगरी बिंगरी दर्रा, डुग्रीला दर्रा, बालचा दर्रा, चोरहोती दर्रा, बाराहोती दर्रा , टोपिढूंगा दर्रा, कुनकुलखाल दर्रा, सुंदरढूंगा दर्रा, कालिंदी दर्रा

District chamoli चमोली जिले के प्रमुख ग्लेशियर


दूनागिरी ग्लेशियर, सतोपंथ ग्लेशियर, बद्रीनाथ ग्लेशियर, भागीरथ ग्लेशियर, खड़क ग्लेशियर, तिपराबमक ग्लेशियर