Prithvi ki antarik sanrachna


 Prithvi ki antarik sanrachna-पृथ्वी की आंतरिक संरचना

 Prithvi ki antarik sanrachna : पृथ्वी की आंतरिक संरचना की संबंधित जानकारी भूकंप Earthquake की तरंगों व पृथ्वी के अंदरूनी भाग में उच्च ताप एवं दाब तथा उल्काश्म साक्ष्यों से प्राप्त होता है। पृथ्वी की आंतरिक संरचना Prithvi ki antarik sanrachna कई परतो से बनी हुई है। 

परतो के निर्माण के दौरान भारी पदार्थ जैसे लोहा एवं निकिल तत्व केंद्र की ओर तथा हल्के पदार्थ जैसे सिलिकॉन एलमुनियम बाहर की ओर जमा हो जाते है। पृथ्वी की आंतरिक संरचना Prithvi ki antarik sanrachna का विवरण निम्न प्रकार की परतो से है। 

1. भू-पर्पटी  2.  मैटल    3. क्रोड 

भू-पर्पटी (Crust) सबसे बाह्य परत  है इसकी मोटाई पृथ्वी की सतह से लगभग 100 किलोमीटर नीचे तक है इसकी ऊपरी परत अवसादी चट्टानों से बनी है जिसमें सिलिकॉन एवं एलमुनियम की प्रचुर मात्रा होती है भूपटल पृथ्वी की Prithvi ki बाहरी सतह जिस पर महाद्वीप तथा महासागर स्थित है भूपटल कहलाता है भूपटल की संरचना सियाल तथा सीमा पदार्थों से हुई है इसका घनत्व 2.7gm/cm3 होता है धरातल से भू-गर्भ की ओर जाने पर गहराई के साथ तापमान वृद्धि की दर 1 सेंटीग्रेड प्रति 32 मीटर है। 

मैटल  भू-पर्पटी के नीचे पृथ्वी की Prithvi ki सतह से 100 किलोमीटर से 2900 किमी के मध्य स्थित है भूपर्पटी एवं मैटल के मध्य पाई जाने वाली असतत सतह को मोहोरोविसिस असतता कहा जाता  हैं।  

क्रोड या कोर मैटल के नीचे पृथ्वी की Prithvi ki सतह से 2900 किलोमीटर से 6400 किलोमीटर के मध्य स्थित है यह निखिल और लोहे से बनी होती है कोर में लोहा की अत्याधिक सांद्रण के कारण उच्च घनत्व तथा पृथ्वी का चुंबकत्व होता है। 

 Earthquake भूकंप

पृथ्वी की आंतरिक संरचना Prithvi ki antarik sanrachna के अंदरूनी भाग में कई प्रकार की भूगर्भिक प्रक्रियाओं के परिणाम स्वरूप धरातल में उत्पन्न कंपन को भूकंप कहां जाता है भूकंप के दौरान तीन प्रकार की तरंगे उत्पन्न होती है।  

1. प्राथमिक 2. द्वितीयक तथा 3. तृतीयक 

केंद्र पृथ्वी की Prithvi ki सतह के नीचे जिस स्थान पर भूकंप की उत्पत्ति होती है उसे केंद्र कहा जाता है। 

अधिकेंद्र केंद्र के ठीक ऊपर पृथ्वी की सतह पर स्थित स्थान को अधिकेंद्र कहा जाता है। 

ज्वालामुखी Volcano

ज्वालामुखी पृथ्वी की सतह पर वहां प्राकृतिक छिद्र अथवा दरार है जिसके माध्यम से पृथ्वी की आंतरिक संरचना Prithvi ki antarik sanrachna के अंदरूनी भाग से गर्म तरल पदार्थ, गैस, राख, जल, वाप्ष, सेल खंड आदि बाहर निकलते हैं ज्वालामुखी कहा जाता है।  इस छिद्र को क्रेटर कहां जाता है ज्वालामुखी तीन प्रकार के होते हैं। 

1. सक्रिय ज्वालामुखी 2. प्रसुप्त ज्वालामुखी 3. मृत ज्वालामुखी

पृथ्वी की गति

घूर्णन गति

पृथ्वी अपने अक्ष पर पश्चिम से पूरब की ओर चक्कर लगाती है जिसके कारण दिन और रात होते हैं पवन एवं समुद्री धाराओं की दिशा में परिवर्तन होता है एवं ज्वार भाटा आता है। 

पृथ्वी को अपने अक्ष पर एक चक्कर पूरा करने में 23 घंटे 56 मिनट व 5.9 सेकंड लगता है इसे नक्षत्र दिवस (Sidereal day)कहते हैं।  

उपसौर और अपसौर स्थिति

पृथ्वी की Prithvi ki  परिक्रमा का मार्ग दीर्धवृत्तीय होने के कारण पृथ्वी और सूर्य के बीच की दूरी वर्ष भर एक समान नहीं रहती अतः 3 जनवरी को सूर्य और पृथ्वी के बीच की दूरी अपेक्षाकृत (1470 लाख किलोमीटर)कम होती है जिसे उपसौर (Perihelion) कहते हैं जबकि 4 जुलाई को पृथ्वी सूर्य से अपेक्षतया(1521 लाख किलोमीटर) अधिक दूरी होती है इसको अपसौर (Aphelion) कहते हैं। 

 इससे पृथ्वी की Prithvi ki परिक्रमण गति में निम्न प्रभाव देखा जा सकता है। 

कर्क और मकर रेखाओं का निर्धारण होता है। 

सूर्य की किरणों का सीधा और तिरछा चमकना

पृथ्वी की Prithvi ki परिक्रमण समय 365 दिन 5 घंटे 48 मिनट व 45.51 सेकंड है इस 5 घंटे 48 मिनट 45.51 सेकंड के कारण प्रत्येक 4 वर्ष में 1 दिन की वृद्धि हो जाती है उस वर्ष में 366 दिन होते हैं इसे लीप वर्ष (Leap year) कहते हैं इसमें फरवरी 29 दिन की होती है।  

 सक्रांति या अयनान्त 

यह वर्ष कि वे तिथियां हैं जिसमें दिन एवं रात की लंबाई में अंतर सर्वाधिक होता है। 

कर्क संक्रांति या अयनान्त (Summer solstice)

21 जून को सूर्य कर्क रेखा पर लम्बवत चमकता है परिणाम स्वरूप उत्तरी गोलार्ध में सबसे बड़ा दिन होता है और ग्रीष्म ऋतु होती है जबकि दक्षिण गोलार्ध मैं इस समय सूर्य तिरछा चमकता है जिससे यहां रातें बड़ी और दिन छोटे होते हैं और गर्मी कम होने से जाड़े की ऋतु होती है।  

 मकर सक्रांति या अयनान्त

22 दिसंबर को सूर्य मकर रेखा पर लंबा पड़ता है जिससे दक्षिणी गोलार्ध में दिन बड़े व रातें छोटी होती है जिससे ग्रीष्म ऋतु होती है जबकि उत्तरी गोलार्ध में सूर्य तिरछा चमकता है जिसके कारण दिन छोटे व रातें बड़ी होती है और गर्मी कम होने के कारण जाड़े की ऋतु होती है। 

 विषुव

यह पृथ्वी की वह स्थिति होती है जब सूर्य की किरणें भूमध्य रेखा पर लंबवत चमकती है जिससे दिन और रात बराबर होते है यह घटना 1 वर्ष में दो बार होती है। 

बसंत विषुव (vernal Equinox) 21 मार्च होता है। 

शरद विषुव (Autumn Equinox) 23 दिसंबर को 

  चंद्र ग्रहण

जब पृथ्वी सूर्य और चंद्रमा के बीच आ जाती  हैं तो सूर्य की संपूर्ण रोशनी चंद्रमा पर नहीं पड़ती है इसे चंद्रग्रहण कहते हैं चंद्रग्रहण हमेशा पूर्णिमा (full moon) की रात्रि को होता है परंतु प्रत्येक पूर्णिमा को चंद्र ग्रहण नहीं होता क्योंकि चंद्रमा और पृथ्वी की कक्षा पथ में 5 डिग्री का अंतर होता है जिसके कारण चंद्रमा कभी पृथ्वी के ऊपर से या नीचे से गुजर जाता है 1 वर्ष में अधिकतम 3 बार चंद्र ग्रहण लगता है चंद्र ग्रहण आंशिक या पूर्ण हो सकता है। 

   सूर्य ग्रहण 

जब चंद्रमा सूर्य एवं पृथ्वी के बीच होता है तब सूर्य ग्रहण होता है पूर्ण सूर्य ग्रहण केवल अमावस्या को होता है चंद्रमा की कक्षा के झुकाव के कारण प्रत्येक अमावस्या को सूर्य ग्रहण नहीं होता पूर्ण सूर्य ग्रहण अधिकतम 7 मिनट 40 सेकंड तक हो सकता है डायमंड रिंग की घटना पूर्ण सूर्य ग्रहण के दिन ही होती है।  

 ज्वार भाटा 

ज्वार भाटा की उत्पत्ति सूर्य एवं चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण शक्ति के कारण होती है परन्तु सूर्य की अपेक्षा चंद्रमा का पृथ्वी से अधिक निकट होने के कारण इसका प्रभाव अधिक होता है दो ज्वार भाटा के बीच का अंतर 12 घंटे 26 मिनट होता है।  

  दीर्घ ज्वार

पूर्णिमा एवं अमावस्या के दिन दीर्घ ज्वार की उत्पत्ति होती है क्योंकि इस दिन सूर्य चंद्रमा और पृथ्वी तीनों एक सीध में होते हैं।  

विश्व का सबसे ऊंचा ज्वार कनाडा के फण्डी की खाड़ी में आता है। 

  लघु ज्वार

कृष्ण एवं शुक्ल पक्ष की अष्टमी को लघु ज्वार की उत्पत्ति होती है क्योंकि इस दिन सूर्य और चंद्रमा पृथ्वी के साथ समकोण बनाते हैं।  

आमतौर पर प्रतिदिन ज्वार दो बार आता है लेकिन इंग्लैंड के दक्षिणी तट पर स्थित साउथ टैम्पटन में ज्वार प्रतिदिन चार बार आता है यह ज्वार दो बार इंग्लिश चैनल से और दो बार उत्तरी सागर से आता है।  

अक्षांश रेखाएं

ग्लोबल पर खींची गई समांतर रेखाओं को अक्षांश रेखा (Latitude) कहा जाता है। 

0 डिग्री की अक्षांश रेखा भूमध्य रेखा (Equator) या विषुवत रेखा कहलाती है यह पृथ्वी के केंद्र से होकर गुजरती है एवं पृथ्वी को दो बराबर भागों में बांटती है भूमध्य रेखा में  दिन और रात बराबर होते हैं। 

 देशांतर रेखाएं

यह ग्लोब पर उत्तर से दक्षिण की ओर खींची जाने वाली काल्पनिक रेखा है यह रेखाएं समांतर नहीं होती यह रेखाएं उत्तरी तथा दक्षिणी ध्रुव में  एक बिंदु पर मिल जाती है। 

ग्रीनविच वेधशाला जो लंदन के निकट है इस से गुजरने वाली देशांतर रेखा को प्रधान देशांतर रेखा कहा जाता है इसका  मान 0 डिग्री देशांतर है पृथ्वी 24 घंटे में 360 डिग्री देशांतर घूम जाती है।  

प्रमाणिक समय

भारत के मध्य प्रमाणित समय IST 82.5 डिग्री पूर्व विंध्यांचल शहर मिर्जापुर से गुजरती है यह नैनी इलाहाबाद के पास है जो ग्रीनविच देशों से 5 घंटे 30 मिनट आगे है भारत की मानक रेखा राज्यों से उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और आंध्र प्रदेश से गुजरती है।  

अंतर्राष्ट्रीय तिथि रेखा

1884 ई० में वाशिंगटन में हुई संधि के बाद 180 डिग्री याम्योन्तर के लगभग एक काल्पनिक रेखा निर्धारित की गई है इसे अंतर्राष्ट्रीय तिथि रेखा कहा जाता है अंतर्राष्ट्रीय तिथि रेखा को पार करके पश्चिम दिशा में पहुंचने पर एक दिन बढ़ जाएगा तथा अंतरराष्ट्रीय तिथि रेखा को पार करके पूरब में पहुंच जाएं तो 1 दिन घट जाएगा 

समोआ और टोकेलाउ दीप ने 30 दिसंबर 2011 को अपनी स्थिति अंतर्राष्ट्रीय तिथि रेखा के पश्चिम में कर ली है दोनों दीप के इस तिथि रेखा परिवर्तन के कारण न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया के समिपता और व्यापार की अधिकता बढ़ गई है।   

अंतर्राष्ट्रीय तिथि रेखा आर्कटिक सागर, बेरिंग स्ट्रेट व प्रशांत महासागर से गुजरती है।